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प्रबोधिनी टीका पद १५ सू० ३ नैरयिकादीन्द्रियनिरूपणम्
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खलु यत्तद् भवधारणीयं तत् खलु समचतुरस्रसंस्थानसंस्थितं प्रज्ञप्तम्, तत्र खलु यत्तत् उत्तरवैक्रियं तत् खलु नानासंस्थानसंस्थितम्, शेषं तच्चैव, एवं यावत् स्तनितकुमाराणाम्, पृथिवीकायिकानां दन्त ! कति इन्द्रियाणि प्रज्ञप्तानि ? गौतम ! एकं स्पर्शनेन्द्रियं प्रज्ञसम्, पृथिवीकायिकानां भदन्त ! स्पर्शनेन्द्रियं किं संस्थानसंस्थितं प्रज्ञप्तम् ? गौतम ! नसूरचन्द्रसंस्थानसंस्थितं प्रज्ञप्तम्, पृथिवीकायिकानां भदन्त ! स्पर्शनेन्द्रियं कियद् वाइल्येन प्रज्ञतम् ? गौतम ! अङ्गुलस्यासंख्येयभागो वाहल्येन प्रज्ञाम्, पृथिवीकायिकानां भदन्त ! स्पर्शनेन्द्रियं कि स्पर्शनेन्द्रिय दो प्रकार की कही है (तं जहा) वह इस प्रकार (भवधारणिज्जे य - उत्तरवेदिए य) भवधारणीय और उत्तर वैद्रिय (तत्थ णं जे से भववारणिज्जे) उनमें जो नवधारणीय है । (से णं समचरं सठाणसंठिए ) वह समचतुरस्त्र संस्थान वाला (पण्णत्ते) कहा है (तत्थ णं जे से उत्तर वेडम्बिए) उनमें जो उत्तर वैक्रिय है ( से णं णाणा संग्राणसंठिए) वह नाना आकार वाला होता है । (सेसं तं चेत्र) शेष वही ( एवं जाव थणियकुमाराणं) इसी प्रकार यावत् स्तनित कुमार ।
(पुढविकाइयाणं भंते! कइ इंदिया पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! पृथ्वीकायिकों की कितनी इन्द्रियाँ कही है ? हे (गोयमा ! एगे फार्सिदिए पण्णत्ते) गौतम ! एक स्पर्शनेन्द्रिय कही है (पुढवि काइयाणं अंते ! फार्सिदिए किं संाणसंठिए पण्णत्ते ?) हे भगवन् ! पृथ्वीकायिकों की स्पर्शनेन्द्रिय किस आकार की कही है ? (गोयमा ! मसूरचंदठाणसंठिए ण्णते) गौतम ! मसूर की दाल के आकार की कही है ( पुढविकाया णं भंते ! फार्सिदिए केवइयं वाहरलेणं पण्णत्ते ? ) हे 'भगवन् ! पृथ्वीकायको की स्पर्शनेन्द्रिय किननी बडी कही है ? ( गोयमा ! अंगु
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मध्य-महुत्व (णवरं फार्सिदिए दुविहे पण्णत्ते) विशेष मे है स्पर्शनन्द्रिय मे अारनी उडी छे ( तं जहा ) ते था अारे ( भवधारणिज्जे य उत्तरवेउच्चिए य) अवधारणीय भने उत्तर वैपि (तत्थ णं जे से सत्रधारणिन्जे) तेसनाभांथी ने सत्रधारीय छे (से णं समचउरंस• संठाणसं ठिए) ते सभयतुरस्र संस्थानवाणी (पण्णत्ते) हे छे (तत्थ णं जे से उत्तरवे :विए) तेमां ने उत्तर वैश्यि छे (से णं णाणासंठाण संठिए) ते नाना भा४रवाजा होय छे (सेसं तं चैव ) शेष ते अभाशे ( एवं जाव थणियकुमाराणं) से प्रारे यावत् स्तनितभार ( पुढविकाइयाणं भंते । वइ इंदिया पण्णत्ता १) हे भगवन् ! पृथ्वी अयिहानी डेंटली धन्द्रिय डडी छे (गोयमा एगे फार्सिदिए पण्णते) हे गौतम! पृथ्वीायिनी मेड स्पर्शेन्द्रिय डी छे ? (पुढ विकायाणं ते! फ सिंदिर किं संठाणसंठिए पण्णत्ते) हे लगवन् ! पृथ्वी अयिनी स्पर्शेन्द्रिय ठेवा आहारती ही छे ? (गोयमा ! मसूरचंद संठ णसंठिए पण्णत्ते) डे गौतम ! भसूरनी हाजना साधरनी ही छे (पुढविकाइयाणं भते । फार्सिदिए केवइयं बाहल्लेणं पण्णत्ते - १) हे गौतम! पृथ्वीभयिोनी स्पर्शेन्द्रिय डेटसी मोटी हडेली छे ? ( अंगुलरस असंखेज्जइ