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प्रमैयाधिनी टीका पद १५ स० ६ अनगाराविषयकवर्णनम् द्विविधाः प्रज्ञताः, तथा उपयुक्ताश्च अनुपयुक्ताश्च, तत्र खलु ये ते अनुपयुक्तास्ते खलु न जानन्ति न पश्यन्ति आहरन्ति, स्त्र खलु ये से उपयुक्तास्ते खलु जानन्ति पश्यन्ति आहरन्ति, तद् एतेनार्थेन गौतम ! एवमुच्यने-अस्त्येके जानन्ति वावद् अस्त्येके आहरन्ति ॥ सू० ६॥ _ टीका-अथेन्द्रियविषयाधिकारात्तद्विशेष दशमं द्वारं प्ररूपयितुमाह-'अणगारस्स णं भंते ! भावियप्पणो मारणं लियसगुन्या एणं समोहयस' हे भदन्त ! अनगारस्य खलु श्रमणपर्याप्तक और अपर्याप्तक (तत्य पंजे ते अपज्जत्तगा) उनमें जो अपर्याप्त हैं (ते शं न जाणति, न पासंति) वे नहीं जानते हैं, नहीं देखते हैं और (आहारे ति)
आहार करते हैं (तत्थ पंजे ते एज्जतगा) उनमें जो पर्याप्त हैं (ते दुविहा एण्णत्ता) दे दो प्रकार के कहे हैं (तं जहा) वे इस प्रकार (उवउत्ता य अणुवउत्सा य) उपयुक्त-उपयोग लगाए हुए और अनुपयुक्त अर्थात् जिन्होंने उपयोग न लगाया हो (तत्थणं जे ते अणुव उत्ता) उनमें जो अनुपयुक्त हैं (ते णं न जाणंति, न पासंति) चे नहीं जानते, नहीं देखते (आहारे ति) और आहार करते हैं (तत्थ पंजे उवत्ता) उनमें जो उपयुक्त हैं (ते णं जाणंति पासंति) वे जानते हैं. देखते हैं (आहारेति) आहार करते हैं (से एएणटेणं गोयमा ! एवं पुच्चइ) इस हेतु से हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि (अत्ोगइया जाणंति, जाव अत्गइया आहारेति) कोई जानते हैं, यावतू कोई आहार करते हैं। - टीकार्य-इन्द्रियों के विषय का प्रकरण होने से उसी ते संबंध विशेष पत्त-चता प्रकट करने के लिए दशल मार की प्ररूपणा की जाती है- जिसने अपनी आत्माको ज्ञान, दर्शन और चारित्र से तथा विशिष्ट तपस्या (पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य) पर्याम भने २५पर्यास (तत्थ णं जे ते अपज्जत्तगा) तमासप यति छ (ते णं न जानंति, न पासंति) ते नथी ngal, नथी हेमता (आहारैति) माडा२ ४२ छ (तत्थ ण जे ते पज्जतगा) मा २ पर्यास छे (ते दुविहा पण्णत्तो) ते में महारत हाछे (तं जहा) ते मारे छ (उवउत्ता य अणुवउत्ताय) उपयुत भने पयो ४२॥२सा भने गनुपयुक्त अर्थात् माये 6पयो न ये डाय (तत्थ णं जे ते अणुउवत्ता) तमाम रे "नुपथुरत छ (सेणं न जाणंति न पासंति) तया नथी लता है नथी हेयता (आहारेति) माहा२ ४२ छे (तत्थ णं जे ते उवउत्ता) तेसोमा २ ५युत छ (ते णं जाणंति पासंति) ते गये थे, हे छ (आहारे ति) मा २ ४२ छे (से एएणट्रेणं गोचमा । एवं वुच्चइ) मे तुथी गौतम ! मे ४ाय छे हैं (अत्येगइया जाणंति जाव अत्थेगड्या आहारे ति) 56nd छे, यावत् माडा२ ४२ छ
ટીકાર્થ-ઇન્દ્રિયોના વિષયનું પ્રકરણ હેવાથી તેમના સમ્બન્ધમાં વિશેષ વક્તવ્યતા પ્રગટ કરવા માટે દશમ દ્વારની પ્રરૂપણ કરાય છે
જેમણે પિતાના આત્માને જ્ઞાન દર્શન અને ચારિત્રથી તથા વિશિષ્ટ તપસ્યાથી ભાવિત त० ८२