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प्रशायनास्त्रे तदनन्तरम् अघायः-निश्चयः प्ररूपणीयः, तदनन्तरम् ईहा प्ररूपणीया, तदनन्तरं व्यञ्जनावग्रहः-प्ररूप्यः, चकारादर्थावग्रहश्च प्ररूपणीयः, तदनन्तरम्-द्रव्येन्द्रियं प्ररूपणीया, तदनन्तरं भावेन्द्रियं प्ररूप्यम्, तदनन्तरम् अतीतबद्धपुरस्कृतानि द्रव्येन्द्रियाणि वक्तव्यानि, तदनन्तरं भावेन्द्रियाणि च वक्तव्यानि, इत्येवं रोत्या द्वितीयोदेशकार्थसंग्रहो गाथाद्वयेन प्रतिपादितोऽवसेयः ॥सू ० २॥
मूलम्-कइ विहेणं भंते ! इंदिउचए पज्जते ? गोयमा ! पंचविहे इंदियउवचए पण्णत्ते ? तं जहा-लोइंदिए उवचए, चविखदिए उवचए, घाणिदिए उपचए, जिभिदिए उवचए, फालिदिए उवचए, नेरइयाणं भंते ! काविहे इंदिओवचए पण्णते ? गोयमा ! पंचविहे इंदिओवचए पण्णत्ते, तं जहा-सोइंदिओवचए जाव फालिंदिओवचए, एवं जाव वेमाणियाणं, जस्स जइ इंदिया तस्ल तइविहो चेव इंदिओवचओ भाणि. यत्वो१, कइविहाणं भंते ! इंदियनिव्वतणा? गोषमा! पंचविहा इंदिय निव्वत्तगा पण्णत्ता, तं जहा-लोइंदियनिम्नत्तणा जाब फालिदिय निव्व. तणा, एवं नेरइयाणं जाव वेसाणियाणं, णवरं जस्स जइ इंदिया अत्थिर, सोइंदियणिवत्तणाणं संते ! कइ सलइया पण्णता ? गोयमा! असंखेजइसमइया अंतोसुहुत्तिया पण्णत्ता, एवं जान फासिंदियनिव्वतणा, च्छेद अत्राय आदि के भेद से अनेक प्रकार का होता है, इस कारण तदनन्तर अवाय का प्ररूपण किया जाएगा। (९) फिर ईहाला और फिर (१०) व्यंजनावग्रह का प्ररूपण होगा। सूत्र में प्रयुक्त 'च' शब्द से अर्थावग्रह की भी प्ररूपणा की जाएगी। (११) फिर द्रव्येन्द्रिय की, फिर (१२) भावेन्द्रिय की, तत्पश्चात् (१३) अतीत, बद्ध और पुरस्कृत इन्द्रियों का कथन होगा। इस प्रकार दूसरे उद्देशक में निरूपित विषयों का संग्रह दो गाथाओं में किया गया हैं। ન્તર અવાયનું પ્રરૂપણ કરાશે.
(6) पछी ४ानु म पछी
(૧૦) વ્યંજનાવગ્રહનું પ્રરૂપણ થશે. સૂત્રમાં પ્રયુક્ત “ચ શબ્દની અર્થાવગ્રહની પણ પ્રરૂપણા કરાશે
(११) ५४ी द्रव्येन्द्रियनी, पछी- (१२) मा यिनी, भने पछी
(૧૩) અતીત, બદ્ધ અને પુરસ્કૃત ઇન્દ્રિયેનું કથન થશે. એ પ્રકારે બીજા ઉદ્દેશકમાં નિરૂપિત વિષને સંગ્રહ બે ગાથાઓમાં કરાએલે છે.