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प्रमेयबोधिनी टीका पद १४ सू० १ कपायस्वरूपनिरूपणम् अप्रतिष्ठितः, एवं नैरयिकाणां यावद् वैमानिकानां दण्डकः, एवं मानेन दण्डकः, मायया दण्डकः, लोभेन दण्डकः, कतिभिः खलु भदन्त ! स्थानः क्रोधोत्पत्ति भवति? गौतम ! चतुभिः स्थानः क्रोधोत्पत्ति भवति, तद्यथा-क्षेत्रं प्रतीत्य, वास्तु प्रतीत्य, शरीरं प्रतीत्य, उपधि प्रतीत्य,एवं नैरयिकाणां यावद् चैमानिकानाम्, एवं मानेनापि, माययाऽपि, लोभेनापि, एवम् एतेऽपि दण्डकाः, कतिविधः खलु भदन्त ! क्रोधः प्रज्ञप्तः ? गौतम ! चतुर्विधः क्रोधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-अनन्तानुवन्धी-क्रोधः, अप्रत्याख्यानक्रोधः, प्रत्याख्यानावरणक्रोधः, संज्वप्रतिष्ठित कहा है (तं जहा) वह इस प्रकार (आयपइटिए) आत्म प्रतिष्ठित (परपट्टिए) परप्रांतष्ठिन (तदुभयपइट्टिए) इन दोनों पर प्रतिष्ठित (अप्पइट्टिए) अप्रतिष्ठत निराधार (एवं नेरझ्याणं जाव वेमाणियाणं) इसी प्रकार नैरयिकों यावत वैमानिकों का (दडओ) दंडक (एवं माणेण दंडओ) इसी प्रकार मान से' दंडक कहना (मायाए दंडओ) माया से दंडक (लोभेणं दंडओ) लोभ से दंडक
" (कहहिं णं भंते ! ठाणेहिं कोहप्पत्ती भवइ ?) हे भगवन् ! कितने स्थानों अर्थात कारणों से क्रोध की उत्पत्ति होती है ? (गोयमा चरहिं ठाणेहिं कोटप्पत्ती भवह) हे गौतम ! चार कारणों से क्रोध की उत्पत्ति होती है (तं जहा) वह इस प्रकार (खेत्तं पडुच्च ) क्षेत्र के आश्रित (वत्थु पद्धच्च) पास्त के आश्रित (सरीरं पडच्च) शरीर के आश्रित (उचहिं पडच्च) उपधि के आश्रित (एवं नेरहयाणं जाव वेमाणियाणं) इसी प्रकार नारकों यावत् वैमानिकों का (एवं माणेण वि, मायाए वि, लोभेण वि) इसी प्रकार मान से भी, 'माया से भी, लोभ से भी (एवं एए चि चत्तारि दंडगा) इस प्रकार ये भी चार दंडक.
(कइविधे णं भंते ! कोहे पण्णत्ते ?) हे भगवन् ! क्रोध कितने प्रकार का कहा (तं जहा) ते भा २ (आयपइटिए) भात्म प्रतिहित (परपइदिए) ५२ प्रतिष्ठित (सदुमयपइटिए) ते पन्ने ५२प्रतिces (अपइद्विए) मप्रतिहत-निराधार (एवं नेरइयाण जाव वेमाणियाणी मे प्रा नेविहाना यावत् वैमानिना (दंडओ) ६४। (एवं माणेणं दंडओ) में रे भाननी सायना ६४ ४३वा (मायाए दंडओ) भायाथी ४ (लोभेणं दण्डओ) समथी।
(कइहिं णं भंते । ठाणेहिं कोहुप्पत्ती भवइ) भगवन् । सो स्थानी मर्यात यशोथी औधनी उत्पत्ति थाय छ ? (गोयमा | चाहिं ठाणेहिं काहुप्पत्ती भवइ) 8 गौतम ! यार
थी औधनी उत्पत्ति थाय छे (तं जहा) ते २0 ४ारे (खेत्तं पडुच्च) क्षेत्रमा माश्रित (वत्थु पडुच्च) वास्तुना (३२)ने आश्रित (सरीरं पडुच्च) शरीरना माश्रित (उवहिं पडुच्ची
पधिना माश्रित (एवं नेरइयाणं जाव वेगाणियाण) मे रे ना२है। यावत् वैमानियनi (एवं माणेण वि, मायाए वि लोभेण वि) मे रे ' भानथी ५९, भायाथी , साथी ५ (एवं एए वि चत्तारि दंडगा) मे४ मारे ५ यार ६४४
(कइ विहेणं भंते ! कोहे पण्णत्ते १) लगवन् ! अध है। प्रारना हा छ ? (गोयमा! म० ७०