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प्रशापनासूत्रे - संस्थानसंस्थितं-कदम्बपुष्पाकारं प्रज्ञप्तस्, अत्रेन्द्रियाणि द्रव्येन्द्रियमावेन्द्रियभेदेन द्विविधानि बोध्यानि, तत्र द्रव्यत्तो निवृत्युपकरणरूपाणि, भावतो लब्ध्युपयोगस्वरूपाणि बोध्यानि, तथा चोक्तम् 'निर्वृत्युपकरणे द्रव्येन्द्रियं, लब्ध्युपयोगो भावेन्द्रियमिति, तत्र निति स्तावत् प्रतिविशिष्टः संस्थानविशेषः सा चापि निवृति बाह्याभ्यन्तरभेदेन द्विविधा भवति, -
तत्रापि वाह्या पर्पटिकादिरूपा, सा खलु विचित्रा न प्रतिनियतरूपतयोपदेष्टुं शक्यते, ___ यथा मनुष्यस्य श्रोत्रे नयनयो रुभयपार्श्वभाविनी, भ्रषौ चोपरितनश्रवणधापेक्षया समे,
भवतः अश्वस्य नयनयोरुपरि तीक्ष्णे चाग्रभागे इत्यादि रीत्या जातिभेदादनेकाकारा. ' भवन्ति, अभ्यन्तरा पुनर्निर्वतिः सर्वेषामेव प्राणिनां समानैव भवतीति भावः किन्तु केवलं ' ___ यहां यह समझना चाहिए-पांचों इन्द्रियों द्रव्येन्द्रिय और भावेन्द्रिय के भेद ' से दो-दो प्रकार की होती हैं । द्रव्येन्द्रियां भी दो प्रकार की है-निवृत्ति और · उपकरण । भावेन्द्रियां भी दो प्रकार की हैं-लब्धि ओर उपभोग । तत्त्वार्थ सूत्र में कहा है-'निर्वत्युपकरणे द्रव्येन्द्रियस्' अर्थात् निति और उपकरण द्रव्येन्द्रिय हैं लथा 'लन्ध्युषयोगी लावेन्द्रियम् ॥ अर्थात् लब्धि और उपयोग भावेन्द्रिय हैं । इन्द्रियों का जो विभिन्न-विभिन्न और विशेष प्रकार का संस्थान है, . उसे निवृत्ति कहते हैं । निवृत्ति भी दो प्रकार की होती है-बाय निति और आभ्यन्तर निर्वृत्ति । बाह्य निवृत्ति पर्पटिका आदि है। वहअनेक प्रकार की होती है, अतएव उसको किसी एक रूप में कहा नहीं जा सकता। उदाहरणार्थमनुष्य के श्रोत्र (कान) दोनों नेत्रों के अगल-बगल में होते हैं और भौहे ऊपरश्रवण पन्ध की अपेक्षा सम होती हैं, अगर घोडे के कान उसके नेत्रों के ऊपर होते हैं और उनके अग्रभाग तीखे होते हैं। इस प्रकार जातिभेद से ज्ञान अनेक प्रकार के होते हैं । आभ्यन्तर निवृत्ति सब प्राणियों की समान ही होती है। 1 શ્રી ભગવાન-હે ગૌતમ! શ્રેત્રેન્દ્રિયને આકાર કદમ્બના ફૂલના જેવો કહેલ છે. અહીં એમ સમજવું જોઈએ-પાંચે ઈન્દ્રિય દ્રવ્યેન્દ્રિય અને ભાવેન્દ્રિયના ભેદથી બે-બે પ્રકારની હોય છે. દુનિયે પણ બે પ્રકારની છે–લબ્ધિ અને ઉપગ
तपार्थ सूत्रमा ४थु छ-निवुत्युपकरणे द्रव्येन्द्रिय, अर्थात् निति मन ५४२५५ द्रव्यद्रय छ, तथा लब्ध्युपयोगी भावेन्द्रियम् मर्थात् स मन यो मान्द्रिय छे. न्द्रिના જે વિભિન્ન વિભિન્ન સંસ્થાન અને વિશેષ પ્રકારના સંસ્થાન છે, તેને નિવૃત્તિ કહે છે નિવૃતિ પણ બે પ્રકારની હોય છે-બાહ્ય નિવૃત્તિ અને આભ્યતર નિવૃત્તિ, બાહ્મનિ.વૃત્તિ પર્પટિકા આદિ છે–તે અનેક પ્રકારના હોય છે, તેથી જ તેને કોઈ એક રૂપમાં કહી નથી શકાતી. ઉદાહરણ તરીકે માણસના કાન બને તેની પહેલા પડખે છે. અને ભમર કાનની ઉપરની બાજુ શ્રવણબંધની અપેક્ષા સમાન હોય છે. પણ ઘોડાના કાન તેની આની ઉપર હોય છે અને તેને અગ્રભાગ અણીદાર હોય છે. એ રીતે જાતિ ભેદથી કાન