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प्रज्ञापनास
क्षेत्रतोऽनन्ता लोकाः, द्रव्यतः सिद्धेभ्योऽनन्त गुणाः सर्वजीवानन्तभागोना, तत्र खलु यानि किल मुक्तानि तानि खलु अनन्तानि अनन्ताभिरुत्सर्पिण्यवसर्पिणीभिरपह्रियन्ते कालतः, क्षेत्रतोऽनन्ता लोकाः, द्रव्यतः सर्वजीवेभ्योऽनन्तगुणाः, जीववर्गस्य अनन्तभागः, एवं कार्मणशरीराणामपि भणितव्यानि ||०२||
टीका - जीवानां शरीराणि द्विविधानी भवन्ति, बद्धानि मुक्तानि च तत्र प्ररूपणका ले जीवन परिगृहीतानि भवन्ति तानि वद्धानि व्यपदिश्यन्ते, यानि पुनः पूर्वभवेषु जीवैः जो इस प्रकार (कल्ला य मुक्केललगा य) बहू और मुक्त (तत्थ णं जे ते बद्रेलगा) उनमें जो हैं (ते णं अगता) वे अनन्त हैं (अनंताहिं उस्सप्पिणिओसप्पिणिहिं अवहारंति) अनन्त उत्सर्पिणियों अवसर्पिणियों द्वारा अपहृत होते हैं (कालओ) काल से (खेत्तओ अनंता लोगा) क्षेत्र से अनन्त लोक (दव्वओ सिद्धेहिंतो अनंतगुणा द्रव्य से सिद्धों से अनन्तगुणा (सन्दजीवाणंत भागूणा) सर्व जीवों से अनन्तभाग हीन (तत्थ णं जे ते मुक्केल्लया ते णं अनंता) उनमें जो मुक्त हैं, वे अनन्त हैं (अणताहि उस्सप्पिणि ओसप्पिणीहिं अवहीरंति) अनन्त उत्सर्पिणियों अवसर्पिणियों द्वारा अपहृत होते हैं (कालओ) काल से (खेत्तओ अनंता लोगा) क्षेत्र से अनन्तलोक (दव्यओ सव्वजीवेहिंतो अनंतगुणा ) द्रव्य से सब जीवों से अनन्तगुणा (जीववग्गस्साणंतभागे) जीव वर्ग के अनन्तवें भाग ( एवं कम्मगसरीराणि वि भाणियन्दाणि) उसी प्रकार कार्मण शरीर भी कहने चाहिए
टीकार्थ- जिन पांच शरीरों का वर्णन पहले किया गया है, वे दो-दो प्रकार के होते हैं - बद्र और मुक्त | प्ररूपणा करते समय जीवों ने जिन शरीरों को ग्रहण (वद्वेलगाय मुक्केललगा च) अद्ध भने भुक्त (तत्थ र्ण जे ते वट्टेल्लया) तेथे भां ने मद्ध छे (तेणं 'अनंता) तेथे अनन्त है ( अणताहि उस्सप्पिणि ओसपिणिहि अवहीरंति) अनन्त उत्स -- थियो भने अवसर्पिणीयो द्वारा अपहृत थाय छे (कालओ) अणथी (खेत्तभो अनंता लोगा) क्षेत्रथी अनन्त थे। (दव्वओ सिद्धेहिं तो अनंतगुणा ) द्रव्यथी सिद्धोथी अनन्तगाया छे ( सव्व जीवाणंतभागूणा ) मधा दोथी अनन्त लागहीन (तत्थ णं जे ते मुक्केल्लया ते णं अनन्ता) तेयामां ने सुस्त छे तेयो अनन्त छे (अणताहि उस्सप्पिणि ओसप्पिणिहिं अवहीरंति) अनन्त उत्सर्पिली, व्यवसर्पिणीयो द्वारा अपहृत थाय छे (कालओ) अणथी (खेत्तओ अनंता लोगा) क्षेत्री अनन्त हो ( दव्वओ सव्त्रजीवेहिं तो अनंतगुणा ) द्रव्यथी मधा लवोथी अनन्तगण ( जीववगस्साणंत भागे) व वर्गना अनन्तभो लाग
( एवं कम्मगसरीराणि वी भाणियव्वाणि) थेष्ट प्रारे अर्भ शरीर वाले ટીકા – જે પાચ શરીરનું વર્ણન પહેલાં કરી દિધેલુ છે, તે ખે—ખે પ્રકારના હાય છે-બદ્ધ અને મુક્ત પ્રરૂપણા કરતી વખતે જીવેમા જે શરીરાને ગ્રહેણુ કરીને રાખ્યાં