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प्रमेथयोधिनी टीका पद १३ सू. २ गतिपरिणामादिनिरूपणम् अपि एवञ्चैव, नवरं लेश्यापरिणामेन तेजोलेश्या अपि, पद्मलेश्या अपि, शुक्ललेश्या अपि,
स एप जीवपरिणामः ॥ सू०२॥ __. टीका-पूर्व जीवस्य गत्यादि परिणाम विशेषाणां प्ररूपितत्वेन सम्प्रति-एतेषामेव भेदान्
यथाक्रमं प्ररूपयितुमाह-'गतिपरिणायेणं भंते ! कइविहे पण्णते ?' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त गतिपरिणामः खलु पूर्वोक्तस्वरूपः कतिविध:-कियत्प्रकारका प्रज्ञप्तः ? भगवानाह-'गोयमा !' हे गौतम ! 'चउबिहे पण त्ते' गति परिणामश्चतुर्विधः प्रज्ञप्तः, "तं जहा नरयगतिपरिणामे, तिरियगतिपरिणामे, मणुयगतिपरिणामे, देवगतिपरिणामे १' तद्यथानरकगतिपरिणामः, तिर्यग्गतिपरिणामः, मनुष्यगतिपरिणामः, देवगतिपरिणामश्च १, गौतमः पृच्छति--'इंदियपरिणामेणं भंते ! कविहे एण्णत्ते ' हे भदन्त ! इन्द्रियपरिणामः प्रकार ज्योतिष्क भी (नवरं) विशेष (तेउलेस्सा) तेजोलेश्या वाले होते हैं (वेमा.णिया वि एवं चेच) वैमानिक भी इसी प्रकार (नवरं) विशेष (लेस्सापरिणामेणं लेश्यापरिणाम से (तेउलेस्सा वि) तेजो लेश्या वाले भी (पम्हलेस्सा वि) पझम लेश्या वाले भी (स्तुवकलेस्सा वि) शुक्ललेश्या वाले भी (से तं जीवपरिणामे) यह जीव परिणाम की बक्तव्यता हुई
टीकार्थ-इससे पूर्व जीव के गति परिणाम आदि की प्ररूपणा की गई है। अब उन परिणामों के भेदों की क्रमानुसार प्ररूपणा की जाती है
गौतमस्वामी प्रश्न करते हैं-हे भगवन् ! गतिपरिणाम, जिसका लक्षण पहले कहा जा चुका है, कितने प्रकार का है ? - भगवान्-हे गौतम ! गति परिणाम चार प्रकार का है, वह इस प्रकार है(१) नरक गति परिणाम (२) तिर्यक् गति परिणाम (३) मनुज गति परिणाम और (४) देव गति परिणाम ।
(नवरं) विशेष (तेउलेस्सा) तो वेश्यावाण34 छ (वेनाणिया वि एवं चेव) वैमानि पy से प्रारे (नवरं) मे०४ प्रहारे (लेस्सापरिणामण) वेश्या परिणामयी (सेउलेस्सा वि) तनश्यामा ५ (सुकलेस्सा वि) शुश्या ५५ (से तं जीवपरिणामे) मा १ પરિણામની વક્તવ્યતા થઈ
ટીકાર્ય–આના પૂર્વે જીવના ગતિપરિણામ આદિની પ્રરૂપણ કરેલી છે. હવે તે પરિણામોના ભેદોની કમાનુસાર પ્રરૂપણ કરાય છે.
શ્રી ગૌતમસ્વામી પ્રશ્ન કરે છે કે-હે ભગવદ્ ગતિ પરિણામ, જેનું લક્ષણ પહેલું ४६) हेवाये थे, ८६प्रानी छ ? | શ્રી ભગવાન-હે ગૌતમ! ગતિ પરિણામ ચાર પ્રકારના છે, તે આ પ્રકારે -(૧) નરક ગતિ પરિણામ (૨) તિર્યક્રગતિપરિણામ (૩) મનુજ ગતિ પરિણામ (૪) દેવગતિ પરિણામ