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प्रबोधिनी टीका पद १३ . २ गतिपरिणामादिनिरूपणम्
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देवगतिकाः कृष्णलेश्याअपि, यावत् - तेजोलेश्याअपि, वेदपरिणामेन स्त्रीवेदका अपि, पुर वेदका अपि, नो नपुंसक वेदकाः, शेषं तच्चैत्र, एवं यावत् स्तनितकुमाराः पृथिवीका थिय गतिपरिणामेन निर्यग्गतिकाः, इन्द्रियपरिणामेन एकेन्द्रियाः, शेषं यथा नैरविकाणाम्, न वेश्यापरिणामेन तेजोलेश्या अपि, योगपरिणामेन काययोगिनः, ज्ञानपरिणामो नासि अज्ञानपरिणामेन सत्यज्ञानिनः, श्रुताज्ञानिनः, दर्शनपरिणामेन मिथ्यादृष्टयः, शेषं तच्चै अवनस्पतिदायिका अपि तेजोवायु एवञ्चैव नवरं लेश्यापरिणामेन यथा नैरयिक - ( वेदपरिणामेणं) देव परिणाम से (तो इत्थीवेद्गा) न स्त्री वेदी (नो पुर वेदगा) न पुरुष देवी (नपुंसक वेदना) नपुंसक वेदी हैं।
(असुरकुमारा वि पर्वचेच) असुर कुमार भी इसी प्रकार (वरं) विशेष ( देवनिया कण्हलेखावि जाव तेउलेल्खा वि) देवगति के जीव कृष्णलेश्या वा भी यावत् तेजोलेश्या वाले भी होते हैं (बेदपरिणामेणं इत्थवेदगा वि पुरव वेदगाव) वेदपरिणाम से स्त्रीवेद वाले भी और पुरुषवेद वाले भी (नो नपुस वेदगा) नपुंसक वेदी नहीं होते (सेसं तं चैव ) शेष वही ( एवं जाव ि कुमारा) इसी प्रकार यावत् स्तनित कुमार
( पुढचिकाइया गति परिणामेणं तिरियगतिया) पृथ्वीकायिक गति परिणा सेयिंचगति वाले (इंदिय परिणामेणं एनिंदिया) इन्द्रिय परिणाम से एकेन्द्रि (सेसं जहा नेरहाणं) शेष नारकों के समान (नवरं ) विशेष (लेस्सापरिणामे उलेस्सावि) ले परिणाम से तेजोलेश्या वाले भी होते हैं (जोगपरिणामे कायजोगी) योग परिणाम से काययोग वाले (नाणपरिणामे नत्थि) ज्ञान णाम होता नहीं (अण्णाणपरिणामेणं महअण्णाणी, सुग्रअण्णाणी) अज्ञा यारित्रायारिन-हेश यास्त्रिवाणी छे, गयारिती छे (वेदपरिणामेणं) वेढपरिणामथी (नो इथं देद्गा) न स्त्री वेदी (नो पुरिसवेन्द्गा) न थु३प वेही (नपुंसकवेद्गा) नथुरा४ वेही छे
( असुरकुमारा वि एवं चेव) असुर कुमार पायु ४ प्रारे (नवरं ) विशेषता ( देव गतिया कण्हरलेसा वि जाव तेउलेरसा वि) देवगतिना लव पृ॒ष्णु वेश्यावाणाय यावत तेले सेश्यावाणा भए होय हे (वेदपरिण, मेणं इत्यवेदगा त्रि पुरिस्वेदगा वि) वेह परिणामर्थ स्त्रीवेदवाना पशु याने पत्रेवाजा ययु (नो नपुंसक वेद्गा) नपुस पेही नथी होता (सेस् तं चैत्र) शेष तेन (एवं जाव थणियकुमारा वि) येन अक्षरे स्तनित डुभार
( पुढविकाइया गतिपरिणामेगं तिरियगनिया) पृथ्वीभरि गति परिलाभथी तिर्यय गति वाणा छे (इदियपरिणामेण एगिंदिया) इन्द्रिय परिणामथी मेडेन्द्रिय (सेसं जहा नेरइयाणं) शेष नारअना सभान (नवर) विशेष (लेस्सा परिणामेणं तेउलेस्सा वि) बेश्या परिणामथी तेले सेश्यावाणा पशु होय छे, (जोगपरिणामेणं काय जोगी) योग परियाभवी प्रययोगवाणा (णाणपरिणामे नस्थि) ज्ञान परिलाभ नही (अष्णाणपरिणामेणं मइ अण्णाणी, सुय अण्णाणी) अज्ञान