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प्रमैयबोधिनी टीका पद ११ सू० ५ भाषाकारणादिनिरूपणम् जहा आमंतणी१' तद्यथा-अमन्त्रणी, 'आणमणी२' आज्ञापनी, 'जायणी३' याचनी, तह पुच्छणी य ४' तथा पृच्छनी च, पण्णवणी ५' प्रज्ञापनी, 'पच्चक्खाणी भासा' प्रत्याख्यानी भाषा ६ 'भासा इच्छाणुलोमा ७ य' भाषा इच्छानुलोमा च ॥१॥ 'अणभिग्गहिया भासा८' अनभिगृहीता भाषा 'भासा य अभिग्गइंमि बोद्धव्या९' भाषा च अभिगृहीता बोद्धव्या । 'संसयकरणी भासा१०' संशयकरणी भापा, 'वोगड'११, व्याकृता, 'अवोगडा चेव१२१ अव्याकृता चैव ॥२॥ इति, तत्र आमन्त्रणी भापा-यथा हे जिनदत्त ! इत्यादि, इयं हि पूर्वोक्त सत्यादि भापात्रयलक्षण शून्यत्वाम्न सत्या भवति नापि मृषा, नो वा सत्या मृपा किन्तु केवलं व्यवहारमात्र प्रवर्तकखाद् असत्या मृपा व्यपदिश्यते, एवमग्रेऽपि स्वयमूहनीयम् १ आज्ञा. पनी खलु भाषा-आज्ञाप्यतेऽनया, इति व्युत्पत्या परस्य कार्ये प्रवर्तनी भवति, यथा-'इदं कार्यं कुरु' इत्यादि२, याचनी भाषा-कस्यापि वस्तुविशेषस्य मार्गणादि रूपा भवति, यथा की है। वह इस प्रकार है (१) आमंत्रणी (२) आज्ञापनी (३) याचनी (४) पृच्छनी (५) प्रज्ञापनी (६) प्रत्याख्यानी (७) इच्छानुलोमा (८) अनभिगृहीता (९) अभिगृहीता (१०) संशयकरणी (११) व्याकृता और (१२) अव्याकृता । इनका स्व. रूप निम्नलिखित है।
(१) आमंत्रणी-संशेधन सूचक भाषा, जैसे-हे जिनदत्त ! इत्यादि। यह भाषा पूर्वोक्त सत्य असत्य और मिश्र, इन तीनों प्रकार की भाषाओं के लक्षण से विलक्षण होने के कारण न सत्य कहलाती है, न असत्य कही जाती है और न सत्या सत्य ही। यह भाषा केवल व्यवहार प्रवर्तक है, अतएव असत्यामृषा कहलाती है। आगे भी इसी प्रकार समझ लेना चाहिए।
। (२) आज्ञापनी-जिसके द्वारा दूसरे को किसी प्रकार की आज्ञादी जाय। इस प्रकार जो भाषा दूसरे को किसी कार्य में प्रवृत्त करने वाली हो वह आजा. पनी भाषा है। जैसे-'तुम यह करो।' ५२नी छ त । प्रहारे छ-(१) मामी (२) माज्ञानी (3) यायनी (४) २छनी (५) प्रज्ञापनी (6) प्रत्याभ्यानी (७) ४२छानुसीमा (८) मनालगृहीता (6) मिगृहीता (१०) सशय ४२९ (११) व्याकृत। मन (१२) २००याता (तम १३५ निम्नशित)
(१) मामी -समाधन सूय लाषा, सभडे-3 महत्त! विगेरे. मा भाषा प्रति સત્ય, અસત્ય, અને મિશ્ર આ ત્રણે પ્રકારની ભાષાઓના લક્ષણથી વિલક્ષ હોવાને કારણે નથી સત્ય કહેવાતી, નથી અસત્ય કહેવાતી અને નથી સત્યાસત્ય. આ ભાષા કેવળ વ્યવહાર પ્રવર્તક છે. તેથી જ અસત્યા મૃષા કહેવાય છે. આગળ પણ એ રીતે સમજી લેવું જોઈએ.
() આજ્ઞાપની–જેના દ્વારા બીજાને કોઈ પ્રકારની આજ્ઞા અપાય, એ પ્રકારની જે ભાષા બીજાને કેઈ કાર્યમાં પ્રવૃત્ત કરનારી હેય તે ભાષા અજ્ઞાપની ભાષા છે જેમકે. 'तमे मा ४२