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प्रशापनासत्र नो सत्यां भाषां भायन्ते नो मृपां भापां भापन्ते, नो सत्यामृपां भापा मापन्ते एयाम् अस. त्यामृपां भापां भाषन्ते, नान्यत्र शिक्षापूर्वकम् उत्तरगुणलब्धि का प्रतीत्य सत्यामपि भाषां भाषन्ते मृपामपि सत्यामृपामपि असत्यामृपामपि भाषां मापसे, मनुष्या यावद वैमानिकाः, एते यथा जीवास्तथा भणितव्याः ॥ सू० ७॥
टीका-अब प्रकारान्तरेण भापावक्तव्यतामेव प्ररूपयितुमाह-'कइ णं भंते ! भासजाया पण्णता?' गौतमः पृच्छति हे भदन्त ! कति खलु-कियन्ति तावद मापा जातानि-मापाप्रकाररूपाणि प्रज्ञशानि-प्ररूपिनानि सन्ति ? एतच्च पूर्वोक्तस्यापि मापास्वरूपस्य किश्चिद् नहीं बोलते (जो मोसं भालं भासंति) कृपा भाषा नहीं बोलने (जो सच्चामोसं भासं भासंनि) लत्यामृपा भाषा नहीं बोलते (एगं असच्चामोसं भासं भासंति) एक असत्याभूषा भाषा बोलते हैं (णण्णत्व मिक्वा पुधगं उत्तरगुणलद्धिंवा पडुच्च) सिवाय शिक्षागुणपूर्वक अश्वा उत्तर गुगलब्धि की अपेक्षा से (सच्चंपि भासं भासंति) सत्य भाषा भी बोलते हैं (मोसंपि, सच्चामोसंपि, असच्चामोसंपि भासं भासंति) वृषा भी, सत्य मृषा भी और अखत्यसपा भी भाषा बोलते हैं (मगुस्सा जाव वेमाणिया) मनुष्यों से लेकर वैमालिकों तक (एते जहा जीवा तहा माणियव्या) ये जीवों की तरह कहने चाहिए।
टीकार्थ-प्रकारान्तरसे भाषा की ही प्ररूपणा यहां की जाती है गौतम स्वामी प्रश्न करते हैं-हे भगवन ! भाषा के प्रकार अथवा मापा जात कितने कहे गए हैं ? यद्यपि भाषा के कारों का कथन पहले किया जा चुका है, किन्तु यहाँ पुनः जो प्रश्न किया गया है, वह किंचत् विशेषता प्रकट करने के लिए है भृषा भाषा मोसे छ? (गोयमा । पंचि दियतिरिक्खजोणिया णो सच्च भास भास ति) के गौतम । ५येन्द्रिय तिय सत्य साया नथी मारता (णो मोस भासं भासंति) भृषा भाषा नथी मसता (णो सच्चा मोस भास भास ति) सत्या भूषा मा नथी गोसता (एगं असच्चामोस भासं भासति) ये असत्या भृपा मा मा छे (णण्णत्थ सिक्खा पुत्रगं उत्तर गुणलदिवा पडुच्च) सिवाय शिक्षा गुण पूर्व ३५ त्तर गुएसम्धिनी अपेक्षाये (सच्चं पि भास भासति) सत्य मापा ५ मा छे (मोसं पि सच्चामोसं पि, असच्चा मोसं पि भासं भ सति) भूषा पह, सत्य भृषा पर मन मसत्य भूषा पाय मापा माले छ (मणुस्सा जाव वेमाणिया) भनुष्याथी स वैमानि सुधी (एते जहा जीवा तहा भाणियव्वा) मेवानी मानस
ટીકાઈ– પ્રકારાન્તરે અહી ભાષાની પ્રરૂપણ કરાય છે
શ્રી ગૌતમસ્વામી પ્રશ્ન કરે છે-હે ભગવન્ ! ભાષાના પ્રકારો કેટલા કહ્યા છે? અઘપિ ભાષાના પ્રકારનું કથન પહેલા કરી દેવાયું છે, પરંતુ અહીં ફરીથી પ્રશ્ન કરાયેલ છે, તે કઈક વિશેષતા પ્રગટ કરવાને માટે છે, તેથી પુનરૂક્તિ દોષની આશંકા ન કરવી જોઈએ.