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प्रज्ञापनासूत्रे
त्रिलिङ्गा अपि अर्था वाच्या भवन्ति, लिङ्गप्रयस्यापि सत्ता भाव सामान्यपदैर्जातौ व्यवहार संभवात्, एवमेव मृग पशु पक्षिष्वपि विज्ञेयम्, किन्तु नैते गवादिशब्दा स्त्रिलिङ्गाभिधायकाः सन्नि तथाप्रतीतेरभावात् अपि तु पुंल्लिङ्गा एवेति संशयात् किमियं प्रज्ञापनी ? किं वा नेति, भगवानाह - 'हंता, गोयमा !' हे गौतम! हन्त - सत्यम्, 'जा य गाओ मिया पसू पक्खी पण्णवणी ण एसा भासा, ण एसा भासा मोसा' - याच गावो मृगाः पशवः, पक्षिणः, इत्येवं रीत्या उच्चार्यमाणा भाषा प्रज्ञापनी खलु एपा तदर्थ कथनाय प्ररूपणीया भवति यथा वथितार्थप्रतिपादकत्वेन सत्यत्वात् किञ्च जात्यभिधायिकेयं भाषा वर्तते, जातिश्च त्रिलिङ्गा
गोजाति का प्रतिपादन करती है और जाति में तीनों लिंगों वाले पदार्थ सम्मिलित होते हैं, क्यों कि स्त्री गौ, पुरुष गौ और नपुंसक गौ, इन तीनों का 'गो' जाति में समावेश होने से जातिवाचक सामान्यपद तीनों लिंग वालों का बोधक होता है । इसी प्रकार 'मृग' यह जाति वाचक शब्द स्त्रीमृग, पुरुष - युग और नपुंसकमृग, तीनों का वाचक होता है । पशु और पक्षी शब्दों को भी इसी प्रकार त्रिलिंग का वाचक समझना चाहिए । इस प्रकार ये शब्द तीनों लिंगों के पदार्थों के बाचक तो हैं, मगर स्वयं त्रिलिंग नहीं हैं सिर्फ पुलिंग हैं । अतएव यह आशंका उत्पन्न होना स्वाभाविक है कि क्या एक ही पुलिंग शब्द तीनों लिंगों वाले पदार्थ का वाचक होकर भी सत्य माना जा सकता है ? क्यों इसे मिथ्या भाषा नहीं समझना चाहिए ?
भगवान् उत्तर देते हैं-गौतम, हां, यह जो गावः, मृगाः पशवः, पक्षिणः, इस प्रकार उच्चारण की जाने वाली भाषा है, यह भाषा प्रज्ञापनी है, अर्थात उस अर्थ का कथन करने के लिए प्रयोग करने योग्य है । वह यथार्थ वस्तु का (गाओ गाव') गाये। थे भाषा समग्र गोलतिनु प्रतिपादन ४रे छे भने मालतिभांत्र લિંગાવાળા પદ્માસ'મિલિત હૈાય છે, કેમકે સ્ત્રી ગાય, અને પુરૂષ ગાય, અને નપુસક ગૌ એ ત્રણેના ગાજાતિમાં સમાવેશ હાવાથી જાતિ વાચક સામાન્ય પદ ત્રણે લિંગવાળાના ખાધક થાય છે
એજ પ્રકારે મૃગ એ જાતિ વાચક શબ્દ સ્રી મૃગ, પુષ મૃગ, અને નપુંસક મૃગ એ ત્રણેના વાચક અને છે. પશુ અને પક્ષી શબ્દને પણ ત્રીલિંગના વાચક સમજવા જોઈએ એ રીતે એ શબ્દો ત્રણે લિગેાના પદાર્થના વાચક છે. પણ સ્વયંત્રિલિંગ નથી. ફક્ત પુલિં’ગ છે. તેથીજ આ આશંકા ઉત્પન્ન થવી સ્વાભાવિક છે કે શુ' એક જ પુલિંગ શબ્દ ત્રણે લિગાવાળા પદાર્થ વાચક મનીને સત્ય માની શકાય છે? કેમ એને મિથ્યા ભાષા નહી સમજવી જોઈ એ ?
श्री भगवान् उत्तर याये छे-हे गौतम! हा था ? गावः मृगा. पशवः पक्षिणः थे રીતે ઉચ્ચારણ કરાતી ભાષા છે, એ ભાષા પ્રજ્ઞાપની છે, અર્થાત્ એ અનુ` કથન કરવાને
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