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प्रशापनासूत्र उवघाइयणिस्तिया१०-'कोहे भाणे माया लोभे पिज्जे तहेव दोसे य । हासभए अक्खाइय उवघाइय णिस्तिया दलमा ॥१॥ अपज्जत्तिया णं भंते ! काविहा भासा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णता, तं जहासच्चा मोसा, असच्चा मोसा य, सच्चा मोसा णं अंते ! भासा अपज्जत्तिया कतिविहा पण्णता ? गोयमा ! दसविहा पण्णता, तं जहाउप्पणमिस्तिया१ विगयमिस्तियार उप्पण्णविगतमिस्सिया३ जीव मिस्सिया४ अजीवमिस्तिया५ जीवाजीवमिस्सिया६ अणंतमिस्सिया७ परित्तमिस्सिया८ अद्धामिस्सिया९ अद्धद्धामिस्सिया१० असचा मोसा णं भंते ! भासा अपजत्तिया कइविहा पण्णता ? गोयमा! दुवालसविहा पपणत्ता, तं जहा-आमंतिणि१ आणमणीर जायणी३ तह पुच्छणी य ४ पण्णवणी ५। पञ्चक्खाणी६ भासा भासा इच्छाणुलोभा य ७॥१॥ अगभिग्गहिया भासाट भाला य अभिग्गहमि वोद्धवा९, संसयकरणी भासा१० वोगड११ अयोगडा चेव१२ ॥२॥ ॥तू० ५॥
छाया-भाषा खलु भदन्त ! किमादिका किं प्रभवा, किं संस्थिता, कि पर्यवसिता ? गौतम ! भाषा खलु जीवादिका शरीरप्रभवा वज्रसंस्थिता लोकान्तर्यवसिता प्रज्ञप्ता 'भाषा
भाषा के कारण आदि का विचार शब्दार्थ-(भासा णं) भाषा (भंते !) हे भगवन् ! (किमादीया) क्या आदि वाली है-भाषा का मूल कारण क्या है ?) (किं पवहा) भाषा का प्रभव क्या है ? (किं संठिया) किस आकार की है ? (किं पज्जवसिया) क्या अन्त है ? (गोयमा !) हे गौतम ! (भासा णं) भाषा (जीवादीया) जीव आदि वाली हैभाषा का मूल कारण जीव है (सरीरप्पभवा) शरीर प्रभव है (वज्जसंठिया) वन के आकार की है (लोगंतपज्जवसिया) लोक के अन्त में उसका अन्त है
ભાષાના કારણે આદિને વિચાર शहाथ-(भासाणं) मा। (भंते) भगवन् । (किमादिया) शु माताजी छ अथवा त भाषानु भूण ४२ शुछ १ (किं पवहा) भाषान। प्रसव शु छ ? (कि संठिया) शु सारनी छ ? (किं पज्जवसिया) शु सन्त छ ? (गोयमा ) 3 गौतम। (भासाणं) ला! (जीवादिया) पाहाणी छे-भाषानु' भूण ७१ ४२ छ (सरीरप्पभवा) शरीर सप छे (वजसंठिया) पना २४२पाणी छे (लोगंतपज्जवसिया) ना सन्तमा तेरा