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अयं ने भर्तृदारका इति ? गौतम ! नायमर्थः समर्थः, नान्यत्र संज्ञिनः अथ भदन्त ! उल्टो गौणः खरो वटकः, अजः एडको जानाति ब्रुवाणः अहमेतद् ब्रवीमि ? गौतम । नायमर्थः समर्थः, नान्यत्र संज्ञिनः अथ भदन्त । उष्ट्रो यावद् एडको जानाति आहारम् अहरन् अहमेतद् आरामि ? गौतम ! नायमर्थः समर्थः, यावद् नान्यत्र संज्ञिनः, अथ भदन्त ! उष्ट्रो गौणः खरः घोटकः अजः एडको जानाति इमौ मे अम्बापितरौ ? गौतम ! नायमर्थः समर्थः, चालक अथवा अवोध बालिका जानती है (अयं मे भट्टिदारए, अयं मे भहिदार यत्ति) यह मेरे स्वामी का पुत्र है, यह मेरे स्वानी की पुत्री है ? (गोयमा ! णो हण सम, णभ्णत्थ सणिणो ) गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं, संज्ञी को छोड कर (अह अंते ! उट्टे गोणे खरे घोडए अए एलते) हे भगवन् ! ऊंट, बैल, गधा, घोड़ा,
करा, भेड को (जाति) जानता है (बुयमाणे) वोलता हुआ (अहमेसे व्यामि) मैं यह बोलता हूं (गोमा ! णो इणडे समद्वे) गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है (पणत्थसण्णिणो ) संज्ञी को छोड कर ।
(अह भंते ! उट्टे जाच एलते जाणति आहारं आहारेमाणे भगवन् ! ऊंट यावत् भेड जानता है आहार करता हुआ (अह मेसे आहारेमि ) मैं यह खाता हूं (गोयमाणो इट्टे समट्ठे जाव णण्णत्थ सण्णिणो) हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं, संज्ञी को छोड कर
(अह भंते ! उहदे खरे घोडए अए एलए जाणति-अयं मे अंमापियारो) भगवत् ! ऊट, गधा, घोडा, बकरा, भेड जानता है कि यह मेरे माना- पिता ? (गोमा ! णो इट्ठे समहे, जाव णण्णत्थ सणणो ) हे गौतम! यह अर्थ अथवा ममोध मासि ये है (अयं मे भट्टिदारए, अचं भट्टिदारयत्ति ) या अभारा स्वामीना पुत्र छे, आ भारा स्वाभीनी पुत्री छे ? (गोयमा ! णो इणट्टे समट्ठे, गौतम ! मे अर्थ समर्थ नधी, (णण्णत्थ सण्णिणो ) सज्ञी सिवाय
(अहभंते! उट्टे गोणे, खरे घोटए अए एलते ) हे भगवन् ! ूट, जजह, गधेडु, घोडो, मधुरेश. घेटा (जाणति) लो छे (वुयमाणे) मोसता था ( अहमेसे बुयामि) हुमा जो छु (गोयमा | णो इणट्टे समट्टे) हे गौतम! आ अर्थ समर्थ नथी (पण्णत्थ सण्णिणो ) સન્નીને છેડીને
(अह मंते ! उट्टे नाव एलते जाणति आहार आहारेमाणे) हे भगवन् ! अट यावत् अशे नशे द्वे आहार ४२री रडेस ( अहमेसे आहारेमि) हुँ मा भारी छु (गोयमा ! णो इणट्टे समट्टे जाव णण्णत्थ सण्णिणो ) हे गौतम । आा अर्थ समर्थ नथी संज्ञी सिवाय (अह भंते ! उट्टे खरे घोडए अए एलए जाणति - अयं मे अम्मा पियरो) डे भगवन् ! ज ट, गधाडा, मो, षड् लो छे है या भारा भाता - पिता छे ? (गोयमा ! णो इट्टे समट्टे जाव णण्णत्थ सण्णिणो ) हे गौतम! या अर्थ समर्थ नथी, संज्ञी सिवाय
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