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प्रमेययोधिनी टीका पद १० सू. ५ द्विप्रदेशादिस्कन्धस्य चरमाचरमत्वनिरूपणम्
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व्यपदिश्यते स्थापना ०० ०० 'णो चरिये य अचरिमाई य अवत्तव्वयाई य २२' सप्त प्रदेशिकः स्कन्धो नो 'चरमथाचरमौ चावक्तव्यौ य' इति व्यपदिश्यते प्रागुक्तयुक्तेः, 'सिय चरमाई य अचरमेय अवत्तव्यए य २३' स्यात् - कदाचित् सप्तप्रदेशिकः स्कन्धश्वरमौ चाचरमश्यावक्तव्यश्च' इति व्यपदिश्यते स्थापना - 'सिय चरमाई य अचर मे य अवतव्या य २४' सप्तप्रदेशिकः स्कन्धः स्यात् - कदाचित 'चरमौ चाचरमश्रावक्तव्यौ च' इति व्यपदिश्यते स्थापना - ० 'सिय चरमाई य अचरमाई य अवत्तव्वए य २५ ' सप्तप्रदेशिकः स्कन्धः स्यात् -
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कदाचित् 'चरमौ चाचरमौ चावक्तव्यश्च' इति व्यपदिश्यते स्थापना - : : : 'सिय चरमाई य अचरमाई य अवत्तव्वयाई २६' सप्तप्रदेशिकः स्कन्धः स्यात् - कदाचित् 'चरमौ चाचरमौ चावक्तव्यौ च' इति व्यपदिश्यते स्थापना - ००० : अत्रेदमवसेयम्-यतः सप्तप्रदेशिकः स्कन्ध एकस्मिन्नाकाशप्रदेशेऽवगाहते एवमेव द्वयोराकाश प्रदेशयोरवगाहते, एवं त्रिष्वपि चतुर्षु अपि पञ्चस्वपि पट्स्वपि सप्तस्वपि चावगाहते तत एव कहा जा सकता है, स्थापना इस प्रकार हैसत प्रदेशी स्कंध 'चरम- अचरमौ-अवक्तव्यौ' नहीं कहा जाता है। उसे कथंचित् 'चरमौरम-अवक्तव्य' कह सकते हैं, उसकी स्थापना यों है- : : : प्रदेश स्कंध को कथंचित् 'चरमौ - अचरम - अवक्तव्यौ' कहा जा सकता है, उसकी स्थापना इस प्रकार है- ::: उसे 'चरमौ - अचरमौ - अवक्तव्य' भी कहा जा सकता है । स्थापना इस प्रकार है- : : उसे 'चरमौ - अचरमौ - अवक्तव्यौ' भी कहते हैं | उसकी स्थापना इस प्रकार हैतात्पर्य यह है कि कोई सप्तप्रदेशी स्कंध आकाश के एक प्रदेश में रहता है, कोई दो आकाशप्रदेशों में रहता है, इसी प्रकार कोई तीन में, चार में, पांच में, छह में और कोई सात प्रदेशों में भी रहता है । इसी कारण पूर्वोक्त भंग उसमें संभव होते हैं ।
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अरे छे -०००० सप्तप्रदेशी सुन्ध चरम अचरमौ अवक्तव्यौ. नथी उही शाता तेभने
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अथथित "चरमौ अचरम अवक्तव्य ४ ही शहीये छीजे तेनी स्थापना ग्राम छे— सप्तप्रदेशी अन्धने थथित 'चरमौ अचरम अवक्तव्यौ उही शाय छे, तेनी स्थापना आ शेते - : : : तेने चरमौ अचरमौ - अवक्तव्य पशु अडी शाय छे. तेनी स्थापना भा रीते छे-: : : तेन 'चरमौ - अचरमौ - अवकन्यौ । हे छे तेनी स्थापना भा
अठारे छे -०००० :
તાત્પર્ય એ છે કે કેાઈ સસપ્રદેશીસ્કન્ધ આકાશના એક પ્રદેશમાં રહે છે, કેાઈ એ આકાશ પ્રદેશમાં રહે છે, એ પ્રકારે કાઇ ત્રણમાં, ચારમા, પાંચમા, છમાં અને કોઇ સપ્તપ્રદેશે.માં પણ રહે છે. એજ કારણે પૂર્વોક્ત ભંગ તેમાં સંભવિત થાય છે.
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