Book Title: Karmagrantha Part 4
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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गामी आत्मा यदि अपमा चारिप-बल विशेष प्रकाशित करता है तो फिर वह प्रमावों- प्रलोभमों को पार कर विशेष अप्रमत्त-अवस्था प्राप्त कर लेता है । इस अवस्था को पाकर वह ऐसी शक्ति-तिकी तैयारी करता है कि जिससे शेष रहे-सहे मोह-बन को नष्ट किया जा सके । मोह के साथ होने वाले भावी यद्ध के लिये की जानेवाली तैयारी की इस भूमिका को आठवां गणस्थान कहते हैं।
पहले कभी न हुई ऐसी आत्म-शुद्धि इस गुणस्थान में हो जाती है । जिससे कोई विकासगामी आत्मा तो मोह के संस्कारों के प्रमाव को क्रमशः दबाता हुआ आगे बढ़ता है तथा अन्त में उसे विस्मुल हो उपशान्त कर देता है। और विशिष्ट आत्म-शुद्धि वाला कोई दूसरा व्यक्ति ऐसा भी होता है, जो मोह के संस्कारों को अगशः नः दल से शु.त'
पता है नम: अम्स में उन सब संस्कारों को सर्वथा निर्मूल हो कर डालता है । इस प्रकार आठवे गुणस्थान से मागे बढ़ने वाले अर्थात अन्तरात्म-भाव के विकास द्वारा परमात्म-भाव-रुप सर्वोपरि भूमिका के निकट पहुंचने वाले आत्मा दो श्रेणियों में विभक्त हो जाते हैं।
एक श्रेणियाले तो ऐसे होते हैं, जो मोह को एक बार सर्वथा थवा तो लेते हैं, पर उसे निम्ल नहीं कर पाते। अनए जिस प्रकार किसी बर्तन में भरी हुई माप कभी-कभी अपने वेग से उस बर्तनको उड़ा ले मागती है या नीचे गिरा देती है अथवा जिस प्रकार राख के नीचे दबा हुआ अग्नि हवा का अकोरा लगते ही अपना कार्य करने लगता है। किवा जिस प्रकार जल के तल में बैठा हुआ मस थोड़ा सा क्षोभ पाते ही ऊपर उठकर जल को गंदला कर देता है, उसी प्रकार पहले बनाया हुआ मी मोह आन्तरिक युद्ध में थके हुए उन प्रथम श्रेणि छाले आत्माओं को अपने वेग के द्वारा नीचे पटक देता है । एक बार सर्वथा चबाये जाने पर भी मोह, जिस