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कर्मग्रन्थ भाग चार
सासावनसम्यग्दृष्टिमाले, अन्य सब दृष्टिवालों से कम हैं। औपशमिकसम्यग्दष्टि वाले, सासाचन सम्पम्हष्टि वालों से संख्यातगुण हैं ।।४३||
भावार्थ--लान्तक देवलोक से लेकर अनुत्तरविमान तक के मामिकदेवों को तथा गर्भ-जन्य संख्यातवर्ष आयुवाले कुछ मनुष्य-सियञ्चों को शुल्कलेश्या होती है । पपलेश्या, सनत्कुमार से ब्रह्मलोक तक के वैमानिकयों को और गर्भ-जन्य संख्यात वर्ष आयु वाले कुछ मनुष्यतिर्यञ्चों को होती है। तेजोलेश्या, बादर पृथ्यो, जस और वनस्पतिकायिक जीवों को, कुछ पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च-मनुष्य, भवनति और व्यन्तरों को, ज्यों हो तथा ५-काम फारम के मालिकोंको होती है। सय पप्रवेश्या वाले मिलाकर सब शुल्कलेश्यावालों की अपेक्षा सेण्यातगण' हैं। इसी तरह सम तेजोलण्यावाले मिलाये जायें तो सब पयलेश्याबालों से संख्यातगण ही होते हैं । इसी से इनका • संज्ञिमार्गणा का पृ० १३६ और आहारकमार्गणा का पृ १३ पर है।
अल्प-बहुत्व पद में सम्यक्त्वमार्गणा का जो अल्प-बहुत्व पृ० १३६ पर है, वह संक्षिप्तमात्र है।
गोम्मटसार-जीवकाण्ड की ५३६ से लेवार ५४१ वी तक की गाथाओं में जो लेश्या का अत्म-बहुत्व द्रव्य, क्षेत्र, काल आदि को लेकर बतलाया गवा है, वह कहीं-कहीं यहाँ से मिलता है और कहीं-कहीं नहीं मिलता ।
भव्यमार्गणा में अभव्य की संख्या उस में मंग्रन्थ की तरह जघन्ययुक्तानन्त कही हुई है।
___-जी गा० ५५६ । सम्यक्त्व, संज्ञी और आहारकामार्गणा का अल्प-बहुत्व उसमें वर्णित है।
-जी० गा. ६५६---६५८-६६२----६७० ।