________________
कर्मग्रन्थ भाग चार
... परिशिष्ट न०११
श्वेताम्बरोय तथा दिगम्बरीय संप्रदाय के [कुछ] समान
तथा असमान मन्तव्य ।
( क ) निश्चय और व्यवहार-दृष्टि से जीव शस्त्र की व्याख्या धोनों संत्रवाय में तुल्य है । पृष्ठ-४ । इस सम्बन्ध में जीवकाण्ड का 'शमाधिकार' प्रकरण और उसको टीका देखने योग्य है ।
मार्गणास्थान शब्द की व्याश्या वोनों सांप्रदाय में समान है। पृष्ठ-४।
गुणस्थान राव की वारूपा शैली फर्मग्रन्थ और जोशकाज में भिलसी है, पर उसमें सात्त्विक अर्थ-भेद नहीं है । पृ०-४ ।
उपयोग का स्वरूप दोनों सम्प्रदायों में समान माना गया है। पृ०-५ ।
कर्मग्रन्थ में अपर्याप्त संजी को तीन गुणस्थाम माने हैं, किन्तु गोम्मटसार में पांच माने हैं । इस प्रकार दोनों का संस्थाविषयक मलमेव हैं, तथापि वह अपेक्षाकृत है, इसलिये वास्तविक दृष्टि से उसमें समानता ही है । पृ.-१२ ।
केवलज्ञानी के विषय में संशित्व तथा असंशिस्व का व्यवहार दोनों संप्रदाय के शास्त्रों में समान है। पृ.-१३ ।।
वायुकाय के पारीर की ध्वजाकारता दोनों संप्रदाय को मान्य है । पृ०-२०॥