Book Title: Karmagrantha Part 4
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 332
________________ गा० प्रा० सं० हि. ५६.७०-उरिम उपरिम कपर का। १३,२२,२६,३४1_उवशम[६५-६, उपशम उपशम-नामक सम्यक्त्व तथा ४६.६४.६७.5 १६६-२४,२०५.१] भाव-विशेष । ६९-उपसमसेहो उपशम श्रेणी 'उपशम श्रेणि' नामक श्रेणि-विशेष। ७०-उवसामग नौयां और इसा गुणस्थान । 'उपशान्त मोह' नामक ग्यारहवाँ ६२, ७०,5 उपशान्त गुणस्थान । कर्मग्रन्थ भाग चार ५८.६०.६१.१-उवसंत २६-२,२७,३१,४६.-ऊण ऊन ५५.७७,७६.८१, ८.५६.७०,७१.७५-एग ५१-एगजियवेस ७७-एगरासी एक एकजीवदेश एकराशि एक। एक जीवके प्रदेश । एक समुदाय। एक इन्द्रिययाला जीव-विशेष । २.१५.३६,३८,४४-ए(इ)गिदि एकेन्द्रिय २.१५.३६,३८,४६-१०-११] ६६५-एव एव हो। इस प्रकार । २६१ ७१,७६-एवं एवम्

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