Book Title: Karmagrantha Part 4
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 331
________________ गार - प्रा० २६० ६१ -उइरति उदीरयन्ति उदित होते हैं। ७१--उक्कस्स उत्कृष्ट सबसे बड़ा । ५२-उत्तर उत्तर अवान्तर विशेष तथा 'औदयिक नामक भाव विशेष । ७.८.६०-२.६७-२, उदय (इक) उदय 'उदय' नामक कर्मोको अवस्था६६, ६.१.१६७-६, विशेष । २०५-२] ७८,--उदीरणा [६] उदोरणा 'उदीरणा' नामक काँकी अव स्था विशेष । ७५.७७---उरिअ उद्धरित निकाल लेना । ४,५,२४,२६ तरल[६३-८] 'औदारिक' नामक काय योग औदारिक ४६.४७) विशेष । २६.२७.२८ - उरलदुग औदारिक द्विक 'औदारिक' और 'औदारिकमिश्र' नामक काययोग विशेष । ४.२८,२६.) उरलमोस (मिस्स) औदारिकमिय 'औदारिकमिश्रयोग' नामक काय ४६.५६.5 (-जोग) योग) योग-विशेष १,५,३०,३५.६५.-उपओग [५-८] उपयोग 'उपयोग' नामक मार्गणा-विशेष १-क्रियापद शब्द विभक्ति-सहित रक्स गर है । कर्मग्रन्य भाग चार

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