Book Title: Karmagrantha Part 4
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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गा.
स
हि.
प्रा० ६६-चउघाइन्
चतुर्थक
-चउत्थत
२-चजदस ५२,५३-चउपच्च
७२-चऊपल्लपरुवणा ८,३६,६३.७६-चऊर
६,३२-घरिदि
५४,५७ - चवीस ६-२,१२,१७.१
चतुतिन् 'ज्ञातवरण', 'दर्शनावरण', 'मोह
नोय' और 'अंन्तराय-नामक चार कर्म ।
चौथा । चतुर्दश चौदह । चतुःप्रत्ययक लार कारणों से होनेवाला बन्ध
विशेष । चतुष्पल्यप्ररूपणा चार 'पल्यों का वर्णन । चतुर
चार । चतुरिन्द्रिय चार इन्द्रियोंगाला जोव-विशेष । चतुविशति चौबीस । चक्षुष 'चक्षुर्दर्शन' नामक दर्शन-विशेष । चरित्र 'चारित्र'। चरिम
अखीरका ।
२०,२८,३४-चच [६२-४]
६४६५-चरण १६ १७,१८,२०
-चरम २१,२२,२७
कर्मग्रन्थ भाग चार
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