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५२ - दुपच्चअ
३० - दुकेवल
५४, ५७ - दु (ग) बीस - दुच्चिय ५६ – दुमिहस
७२-
४५- दुविह ३२,४८ - बुदंस (-१)
३७- देव
८६- देवदरि
१२,१७,२२.२६ ॥ ३३,४२,४६, ४८, ६– बेस ( -जय )
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[६१-२३]
सं० विप्रत्ययक
द्विकेवल
द्वाविंशति
द्वावेव
ਵਿਸ਼ਿਆ
द्विविध
द्विदर्श (न)
देव
देवेन्द्रसूरि
देश
हि०
दो कारणों से होनेवाला बन्ध
विशेष |
'केवलज्ञान' और 'केवसदर्शन'
नामक उपयोग-विशेष । बाईस।
दो ही ।
'औदारिक मिश्र' और वैक्रियमिश्र,
नामक योग - विशेष |
दो तरह से ।
'चक्षुर्दर्शन' और 'अचक्षुर्दर्शन'नामक दर्शन- विशेष 1
बेवगति ।
देवेन्द्रसूरि ( इस ग्रन्थ के कर्त्ता ) ।
देशविरति' नामक पाँचवाँ गुणस्थान ।
૪
कर्मग्रन्थ भाग चार