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मनःपर्यवसान'वाला जीव । 'मानकषाय और मानी हुई मात। 'महाशखाका' नामक पल्य-विशेष।
कर्मग्रभ्य भाग चार
४०-माणनामिन मनोमानिम् ११,४९-भय [५५.३] मद, मत ७३-महासळागा महासकाका [२१२-२०]
माबिन् १०-माणिन्
मानिन ११-भाग [५६-१]
माया ४४,४५,५०,५१, --मिच्छ [६७.२१] मिध्यात्व
माषाकषायवाले आव। मानकषाववाले औष। 'मायाकषाय'।
'मिध्यात्व' नामक पहिला गुणस्थान |
५३-मिच्छविरमपाइन मिध्यात्वापिरति- 'मिध्यात्व' और 'अविरतिस
प्रत्ययक
उत्पन्न होनेवाला बन्धनविशेष । १२,१४-मिजादुग मिथ्यात्वद्विक 'मिथ्यात्व' और 'सास्वाइन' नामक
पहिला और दूसरा गुणस्थान । १२--मिलिग मिच्यास्वत्रिक मिथ्यात्व'वास्वादन' और 'मिस
दहि' नामक वीन गुणस्थान ।
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