Book Title: Karmagrantha Part 4
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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म
गा.
पा० १३,२२,३४,४४--वेबग (६६.१०]
५८--वैयवि
अयोपशमसम्यग्दृष्टि जीव । साबेद, पुरुरव और नपुंसकवेद।
देवत्रि
सम
समपचासव सनमासंल्पं
२१,४५,५८,६१-मंग
५२--सगवत्र ७९-सगासंख २४-सचेयर [९०.१४,
१७,९१.१६,१९] २२,३६-सठाव
साज। सचापन । सातबा असंख्याता सत्य और असस्य ।
सत्येतर
स्वस्थान
अपना-अपना गुणस्थान।
सप्तम्
साखा
५९-२,६०.२,५९)
मनवाला प्राणी।
८,९,१४,१७, १८,१९,२५,५१,
५०.४] ४५-२ ५,१५,४५--यभिग
कर्मप्रन्य भाग चार
पर्याप्त और अपर्याप्त सही।
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