Book Title: Karmagrantha Part 4
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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मा.
निजद्विक
मा. ३३ मिजदुग
७१-निवपबाय १०,३०,३६,३५-नि(ना)रय(-गइ)
[५१.१८] १५-नीका [३४-१]
नजारभुत निरगति
सपने दो। अपने पक्ष । 'नरकवि नामक गति-विशेष । 'भीमा' नामक लेश्या-विशेष।
कर्मनाय भान पार
नीला
पश्चात
७९--पच्छा
४३-परपुपुब्धि २,३,५-२,६,८, पखा(ज)(-1)
पश्चानुपी पर्वात
फिर। पीके कमसे। 'पत' नामक जीव-विशेष ।
-
२४--पलियर
पर्यावर
'पर्यात' और 'अपर्याप्त' नामक
आप विशेष। 'प्रविनाका' नामक पल्लविशेष
प्रविमाका
७३ --पविसलामा ३,१५,२०, [२१२-१६] २३.२,१८,१६, ,
प्रथम
पहिला
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