Book Title: Karmagrantha Part 4
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 350
________________ कर्मप्रन्य माग बार गा. प्रा. सं. ४५-परमसंखिन परमसंख्येय 'उत्कृष्टसंख्याव-नामक संख्या विशेष। ६४,६६,६७-२,६८–परिणाम [१९७-३, परिणाम 'पारिणामिक' नामक भाव-विशेष।। २०५-२] ०१.८३- परित्तपत परित्तानन्द 'परिचानन्द' नामक संख्या-विशेष।। ४१,७८--परित्तासंस परिचासंख्या 'परिचासंय' नामक संख्या-विशेष [२१८-११] १२.२१.२९,४१- परिहार [१९-७] परिहार 'परिहारविशुद्ध' नामक संयम विशेष। ८२-पढिभाग परिमाग निर्विमागी बंश। ७२,७७२-पल्ल पल्य 'पक्ष्य' नामक प्रमाण-विशेष । २७,३६-पषण 'वायुकाय' नामक जीव-विशेष । ६९–पारिणामियमाव पारिणामिकमाव 'पारिणामिक' नामक माय विशेष! ४९,७१,५५---पि अपि मी। ८५-पुग्गछ 'पुद्रम' नामक द्रव्य-विशेष! ५.७४८३,८४,८५--पुण किर। २७५

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