Book Title: Karmagrantha Part 4
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 336
________________ कर्मग्रन्य माम चार गा० प्रा० ३,१८,२३,३५,५२-गुण ५४,५६-गुपचत्त १,७०-गुणठाण(ग) [४७] . ७६-गुणण ७२,७६.८१ - गुरु-अ) गुण गुणस्थान । एकोनचत्वारिंशत उन्तालोस । गुणस्थान(क) गुणस्थान । गुणन गुणा करना। उस्कृष्ट । गुरु(क) और, फिर । २३.६६,८४,८५-च २,५,७,१०,१५, १८.१६,२०-२, २१,२७,३०,३४२,३५-३,३८,५०, ५२,६०,६७-३.1 ७०-४,७७,७६-२ ६६-चउगई चतुर चार । चतुर्गति 'मनुष्यगति', "देवगति', 'तिर्यग्गति' और 'नरकगति'-नामक चार गतियाँ।

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