Book Title: Karmagrantha Part 4
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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गा०प्र०
सं०.
हि.
तथा तावत्
उसो प्रकार। तबतक।
७४,८४-तह
७४-ता २.७.२० २१.३०॥ ३२.३३,३८.४८, ५२.५७.७०.७७. -ति (ग) ७६.३४,३५.३६ ।
३८.७०)
कर्मरन्थ भाग चार
सीन।
३२,३३,४८,-त्रिअनाण
यज्ञान 'कुमति', 'कुश्रुत' और 'विमङ्ग
नामक अज्ञान। ८४ --तिपखुत्तो त्रिकृत्व तीन बार । ५५. तिचत्त
त्रिचत्वारिंशत
तेंतालीस । ५२,५३ . तिपच्च
निप्रत्ययक तीन कारणों से होनेवाला बन्ध
विशेष। १०.१७.६४-तिय गइ)[५२-६] त्रिक तीन, तीन इन्द्रियोंयाला जीव
विशेष। ५४-तियहिअचत्त
त्रिकाधिकचत्वा ततालीस । रिंशत्
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