Book Title: Karmagrantha Part 4
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 315
________________ कामनाथ भाग चार १४४ माने हैं और सिद्धान्त में एक नपुसक, सो किस अपेक्षा से ? इसका प्रमाण 1 पृ०-७, मोट । महाम-निक में दो गुणस्थान मानने वालों का तथा तीन गुणस्थान मानने वालों का प्राशय क्या है ? इसका खुलासा । पृ. १२ । कम आदि तीन अशुम लेश्यामों में छह गुणस्थान इस कर्मप्रम्प में माने हुए और पनसंग्रह आदि प्रन्यों में उक्त तीन लेश्या में चार गुणस्थान माने हैं। सो किस अपेक्षा से ? इसका प्रमाणपूर्वक बुलासा 1 पृ०-८८। जग मरण के समय ग्यारह गुणस्थान पाये जाने का कयन है। सब विग्रहगति में तीन ही गुणस्थान कैसे माने गये ? इसका खुलासा । पू०-८६। स्त्रोवेव में तेरह योगों का तया वेव सामान्य में बाग्छ उपयोगों का और नौ गुणस्थानों का जो कपन है, सोय और भाव में से किस-किस प्रकार के क्षेत्र को लेने से घट सकता है ? इसका खुलासा । पु०-६७, मोट । जपामसम्पवरव के योगो में भीवारिकमिश्रयोग का परिंगणन है, सो किस तरह सम्भव है ? इसका खुलासा । पृ०-६।। मार्गणाओं में श्री अल्पाबहुत्व का विचार कर्मग्रन्थ में है, यह आगम भावि किम प्राचीन प्रन्यो में है ? इसकी सूचना । पु०-१५, नोट । काल की अपेक्षा क्षेत्र की को सूक्ष्मता का सप्रमाण कथन । पृ०-१७७ नोट शुल्क, पन और तेमो-लेक्ष्यावालों के संख्यातगुण अल्प-यात्य पर शास-समाधान तथा उस विषय में व्याकार का, मन्तव्य । पु०-१३० नोट सीन योगों का स्वरूप तथा उनके ब्राह्म-आभ्यन्तर कारणो का स्पष्ट कपन और योगों की संख्या के विषय में शङ्का-समाधान तथा द्रव्यमम, प्रध्यापन और शरीर का स्वरूप । पृ०-१३४, ।

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