Book Title: Karmagrantha Part 4
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 323
________________ प्रा० । सं० । शान मा०। ३,१२.१६,२०,२१,२३ अजय २६,३०.४२,४६,४८.५६/ ४७.५०,५४,५६ } -अजो(यो गिन्, ५२- अज्झवसाय ७-२,८-३२,२,३५, अयत' -नामक चोथा गुणस्थान सिया उत्तर मामा-विशेष !६२-१] चौदहवें गुणस्थानवाला जीव । परिणामों के दर्जे। अयोगिन् अध्यवसाय अष्ट -अट्ठ (ड) आठ। ५६,६०-२.६१२ अष्टकर्म अष्टादवा ६६-अट्टकम्म ६४-अट्ठार ५५-अण अन ७३---अणवडिय अनवस्थित आठ कर्म। अठारह। 'अनन्तानुबन्धा-नामक कषाय1 विशेष । [अनवस्थित' नामक पल्य-वि। शेष ।[२११-४] [ 'अनाहारक नामक उत्तर मार्ग। णा विशेष । विशेषता-रहित । [६३-५] ('अनाभिग्रहिक' नामक मिथ्यात्व-विशेष । [१७६-६] १८.२३,२४,३४,४४---अणहार अनाहार कर्मग्रन्थ भाम चार १२- अणागार अनाकार ५१-अणभिगहिय अनाभिग्राहक

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