Book Title: Karmagrantha Part 4
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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गा
।
प्रा.। ६२-अनुवीरगु ४,३५,५०-अन्न
३३--अन्नाणमीस
सं० । अमुदीरक अन्य अज्ञानमिव
हि। 'उदीरणा'न करनेवाला जोव।
और दूसरे । अज्ञान-मिश्रित ज्ञान।
'अपर्याप्त'-नामक जीव-विशेष । 1[११-२]
२, ३, ४–अपजत्त
अपर्याप्त
अपर्याप्त
३,४,६,७,१५.
-अपज्ज १८-२,४५, ५७,६१.६३-अपमत
अप्रमत्त
अप्रमत्त' नामक सातवाँ गुणस्थान । 'अप्रमत'नामक सातवाँ गुणस्थान तक।
५६--अपमत्त
अप्रमत्तान्त
५७.५६,६२,७०-अपुत्व
अपूर्व
( 'अपूर्वकरण' नामक आठवां गुणस्थान ।
कर्भमन्य भाग चार
४६-अपुश्वपणग
अपूर्वपञ्चक
रण-नामक आठवसे लेकर बारहवं तक पाँच गुणस्थान
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