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कर्मचन्त्य भाग बार
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परिशिष्ट नं० ३।
चौथा कर्मग्रन्थ तथा पञ्चसंग्रह ।
जीवस्थामो में योग का विचार पञ्चसंग्रह में भी है । पृ०१५, नोट।
अपर्याप्त जीवस्थान के योगो के संबन्ध का मत-भेव जो इस कर्म प्रग्य में है, वह पञ्चांग्रह को धीमा में विस्तारपर्वक है । प०- १६ ।
जीवस्थान में उपयोगों का विचार पञ्चसाह में भो है । ५।२०, नोट ।
कर्मग्रन्थ कारने विमङ्गज्ञान में वो जीवस्थानो का और पञ्चसंग्रह काग्ने एक जीवस्थान का उल्लेख किया है । प०-६८, नोट ।
अपर्याप्त-अवस्था में औपशमिकसम्यक्तष पाया जा सकता है, यह बात पञ्चपह में भी है । पृ-७० नोट ।
पुरुषो से स्त्रियो को सख्या अधिक होने का वर्णन पांग्रह में है। पु०-१२५, नोट ।
पञ्चाग्रह में मी गुणस्थानो को लेकर लेकर योगो का विचार है। पु. १६३, नोट ।
गुणस्थान में उपयोग का वर्णम पञ्चसंग्रह में है । पृ०-१६७, नोट ।
बन्ध-हेतुभो के उत्तर भेव तथा गुणस्थानो में मूल बम-हेतुओका विचार पञ्चांग्रह में है । पु०-१७५, नोट ।
सामान्य तथा विशेष बन्ध-हेतुभो का वर्णन पञ्चसंग्रह में विस्तृत है । पृ०-१८१, नोट ।