Book Title: Karmagrantha Part 4
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 309
________________ कर्मग्रन्थ भाग भार श्वेताम्बर पन्थों में जिस अर्थ के लिये आयोजिकाकरण आवजितकरण और आवश्यककरण, ऐसी तीन संज्ञाएँ मिलती हैं, दिगम्बरग्रन्थों में उस अर्थ के लिये सिर्फ आजतकरण, यह एक संख्या है | पृ० - १५५ । २३८ माना है और श्वेताम्बराम्थों में काल को स्वतन्त्र अथ्य मो raft भी । किन्तु दिगम्बर-ग्रन्थों में उसको स्वतन्त्र हो माना है। स्वतन्त्र पक्ष में भी काल का स्वरूप दोनों संप्रदाय के ग्रन्थों में एकसा नहीं है। पृ०-१५७ । feat-feat गुणस्थानों में योगों की संख्या गोम्मटसार में कर्मप्रत्थ की अपेक्षा मित्र है । पृ० १६३, मोट । दूसरे गुणस्थान के समय ज्ञान तथा अज्ञान मानने वाले ऐसे यो पक्ष इवेताम्बर-ग्रन्थों में हैं, परन्तु गोम्मटसार में सिर्फ दूसरा पक्ष ०-१६६, नोट | गुणस्थानों में लेश्या की संख्या के संबन्ध में श्वेताम्बर-ग्रन्थों में दो पक्ष है और दिगम्बर-प्रभ्यों में सिर्फ एक पक्ष है । पृ० १७२, नोट । [ जीव सम्यक्तवसहित मरकर स्त्रीरूप में पैं नहीं होता, यह बात दिगम्बर संप्रदाय को मान्य है, परन्तु वेताम्बर संप्रदाय को यह मन्तव्य इष्ट नहीं हो सकता; क्योंकि उसमें भगवान् महिलनाथ का स्त्रीव तथा सम्यक्तवसहित उत्पन्न होना माना गया है । ]

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