Book Title: Karmagrantha Part 4
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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कमग्रन्म भाग पर
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परिशिष्ट नं० २ ।
काभग्रन्थिकों और संद्धान्तिकों का मत-भेद 1
सूक्ष्म एकेन्द्रिम आदि वस जीवस्थानों में तीन उपयोगों का कथाम कार्मग्रन्थिक मत का फलित है। सैद्धान्तिक मत के अनुसार तो छह जोवस्थामों में ही तीन उपयोग फलित होते हैं और वीन्द्रिय आदि शेष चार जोवस्थानों में पांच उपयोग फलित होते हैं । '०-२२, नोट।
अवधिवन में गुणस्थानों को संख्या के संबन्ध में कार्मग्यिकों तथा संवान्तिकों का मत-भेद है। कार्मग्रन्थिक उसमें नो तथा यस गुणस्थाम मानते हैं और सैद्धान्तिक उसमें बारह गुणस्थान मानते हैं । पृ०-१४६ ।
सैद्धान्तिक दूसरे गुणस्थान में मान मामते हैं, पर कार्मग्रन्थिक उसमें अज्ञान मानते हैं । पृ०-१६६, नोट ।
क्रिय तथा आहारक-शरीर बनाते और त्यागते समय कौन सा योग मानना चाहिये, इस विषय में कामपन्थिको का और सवान्सिकोका मत-मेव है । १०-१७०, नोट ।
सिद्धान्ती एकेन्निय में सासादनमाव नहीं मानते, पर फार्मग्रन्थिक मानते हैं । १०-१७१, नोट ।
पग्थिभेद के अनन्तर कौन सा सम्यक्त होता है, इस विषय में सिवान्त तथा कर्मप्रन्थ का मत-भेद है । पृ०-१७१ ।
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