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कर्मग्रन्थ भाग चार
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गुणस्थानों में बन्ध, उबय आदि का विचार पन्धसंग्रह में है। पृ०-१८७, नोट । गुणस्थानों में अल्प-महत्व का विचार पञ्चसंग्रह में है। पृ-१६२,नोट ।
कर्म के भाव पञ्चसंप्र-ए में हैं। १०. २०४, पोट ।
उस सिओं संबई का विचार कर्मग्रन्थ और पञ्चसंग्रह में भिन्न-भिन्न शैली फर है । १०२२७ ।
एक जीवाश्रित भावों की संख्या मूल कर्मग्रन्थ तथा मूल पञ्चसंग्रह में भिन्न नहीं है, किन्तु वोनों व्याख्यानों में देखने योग्य घोड़ा सा विचार मेन है । पृ०-२२६ ।