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कर्म ग्रन्थमाग बार
इन्द्रियमार्गणा में बोन्द्रिय आदि का और कायमार्गणा में सेव:काय आदि का विशेषाधिश्व बोनों सम्प्रदाय में समान १८ है। पृ०-१२२, नोट ।
चक्रगति में विग्रहों की संख्या दोनों सम्प्रदाय में समान है । फिर भी श्वेताम्बरीय ग्रन्थों में कहीं-कहीं जो चार विग्रहों का मतान्सर पाया जाता है, वह दिगम्बरीय अन्धों में देखने में नहीं आया। तथा बपति का कान-मान बोनों सम्प्रदाय में तुल्य है। पक्राति में आनाहारकत्व का काल-मान, व्यवहार और निश्चय, वो दृष्टियों से विचारा जाता है। इसमें से व्यवहार-रष्टि के अनुसार श्वेताम्बर-प्रसिद्ध तस्वार्थमें विचार है और निश्चय-दृष्टि के अनुसार दिगम्बर-प्रसिद्ध तत्त्वार्य में विचार है । अत एव इस विषय में भी दोनों सम्प्रदाय का वास्तविक मतमेव नहीं है । पृ.-१४३ । ___ अवधिवशन में गुणस्थानों की संख्या के विषय में सैद्धान्तिक एक और कासयधिक दो, ऐसे जो तीन पक्ष हैं, उनमें से कार्मपन्थिक दोनों ही पक्ष दिगम्बरोय ग्रन्थों में मिलते हैं । पृ०-१४६ ।
केवलज्ञानी में आहारकत्व, आहारका कारण असातवेदनीय का उदय और औदारिक पुगलों का ग्रहण, ये तोनों बातें दोनों प्तम्प्रदाय में समान मान्य हैं । पृ.-१४८ ।
गुणस्थान में जीवस्थान का विचार गोम्मटसार में कर्मग्रन्थ की अपेक्षा कुछ भिन्न जान पड़ता है । पर वह अपेक्षाकृत होने से वस्तुतः कर्मप्रभ्य के समान ही है । पृ०-१६१, नोट ।
गुणस्थान में उपयोग को संख्या फर्मग्रन्थ और गोम्मट सार में तुल्य है । पृ०-१६७, नोट ।
एकेन्द्रिय में सासाबनभाव मानने और न मानने वाले, ऐसे जो