Book Title: Karmagrantha Part 4
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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कर्म ग्रन्थ भाग चार छाद्मस्थिक उपयोगों का काल-मान अन्तमुंहत्त-प्रमाण दोनों संप्रवायों को मान्य है। पृ०-२०, नोट ।
भावलेश्या के सम्बन्ध की स्वरूप, दृष्टान्त आदि अनेक बाते दोनों सम्प्रदाय में तुल्य है । पृ०-३३ ।
चौदह मार्गणाओं का अर्थ दोनों सम्प्रदाय में समान है तथा जनकी मस गाथाएं भी एकसी हैं। पृ०-४७, नोट ।
सम्यक्तव की व्याख्या दोनों सम्यदाय में तुल्य है। पृ०-५०, नोट ।
ध्याख्या कुछ मिन्नसी होने पर भी आहार के स्वरूप में दोनों सम्प्रदाय का तात्विक भव नहीं है। क्वेताम्बर-ग्रन्थों में सर्वत्र आहारके तीन मेव हैं और दिगम्बर-मन्थों में कहीं छह भेद भी मिलते हैं । पृ०-५०, नोट।
परिहारविशुद्धसंघम का अधिकारी कितनी उम्रका होना चाहिये, उसमें कितना ज्ञान आवश्यक है और वह संग्रम किसके समीप ग्रहण किया जा सकता और उसमें बिहार आदि का कालनियम कैसा है, इत्यादि उसके सम्बन्ध को ना दोनों सम्प्रदाय में बहुत अंशों में समान हैं। पृ०-५१, नोट 1
मायिकसम्यक्तव जिनकालिक मनुष्यों को होता है, यह बात दोनो सम्प्रदाय को इष्ट है । पृ०-६६, नोट ।
केवली में द्रव्यमान का सम्बन्ध दोनों सम्प्रदायों में इष्ट है। पृ०-१०१, मोट।
मिश्रसम्यारष्टि गुणस्थानों में मति आदि उपयोगों की जान-अज्ञान उभयरूपता गोम्मटसार में भी है। पृ०-१०३, नोट ।
गर्भज मनुष्यों की संख्या के सूचक उन्तीस अङ्ग दोनों सम्प्रदाय में दुल्य हैं । पृ०-११७, नोट ।