Book Title: Karmagrantha Part 4
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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कर्मग्रन्थ भाग चार
परिशिष्ट "ठ" |
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पृष्ठ ७८, पक्कि ११ के अनाहारक' शव्वपर
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अनाहारक जीव दो प्रकार के होते हैं। छश्वस्थ और वीतराग । वीतराग में जो अशरीरी (मुक्त) हैं, वे सभी सदा अनाहारक ही हैं; परन्तु जो शरीर भारी है, वे केवल समुद्धात के तीसरे चौथे और पांचवें समय में ही अनाहारक होते हैं । उपस्थ जीव, अनाहारक तभी होते हैं जब वे विग्रहगति में वर्तमान हो ।
जन्मान्तर ग्रहण करने के लिये जीव को पूर्व-स्थान छोड़कर दूसरे स्थान में जाना पड़ता है। दूसरा स्थान पहले स्थान से विश्रेणि-पतित (वत्र रेखा) में हो, तब उसे वक्रगति करती पड़ती है। बक गति के सम्बन्ध में इस जगह तीन बातों पर विचार किया जाता है:
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(१) वक्र - गति में विग्रह ( घुमाव ) की संख्प), (२) वक्र-पति का काल-परिमाण और (३) वक गति में अनाहारकत्व का काल मान ।
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(१ कोई उत्पत्ति स्थान ऐसा होता है कि जिसको बीच एक लिए करके ही प्राप्त कर लेता है। किसी स्थान के लिये दो विग्रह करने पडते हैं और किसी के लिये तीन मी नवीन उत्पत्ति स्थान से कितना ही विश्रेणि-पतित क्यों न हो, पर वह तीन विग्रह में तो अवश्य ही प्राप्त हो जाता है। इस विषय में दिगम्बर- साहित्य में विघारभेद नजर नहीं आता; क्योंकि"विग्रहवतो व संसारिणः प्राक् चतुभ्यः । - तत्त्वार्थ अ० २ ० २८ । इस सु० की सर्वार्थसिद्धि टीका में श्री पूज्यपादस्वामी ने अधिक से अधिक तीन विग्रहवाली गति का हो उल्लेख किया है । तथाः"एकं द्वौ श्रीवामा हारक
तत्त्वार्थ- अ० २. सूत्र ३० ॥ इस सूत्र के ६० राजबार्तिक में भट्टारक श्री अकल देव ने भीं अधिक से अधिक त्रि-विग्रह गति का ही समर्थन किया है । नेमिचन्द्र सिद्धान्तत भी गोम्मटसार जीव काण्ड की ६६६वीं गाथा में उक्त मत का ही निर्देश व रते हैं ।
अन्यों में इस विषय पर मतान्तर उल्लिखित पाया जाता है“विवती च संसारिणः चतुभ्यः " तत्वार्थ अ० २, सूत्र २२ । "एक हौवानाहारकः । " - तत्त्वार्थ अ० २, सू० ३० । वेताम्बर - प्रसिद्ध तत्त्वार्थ अ० २ के भाष्य में भगवान् उमास्वातिने तथा उसकी टीका में श्री सिद्ध सेन णि ने त्रि-विग्रहगति का उल्लेख किया है। साथ ही उक्त भाष्य की टीका में चतुविग्रह गति का मतान्तर भी दरसाया है । इस मतान्तर का उल्लेख बृहत्संग्रहणी की ३२५ वीं गाथा में और श्रीभगवती - शतक ७, उद्देश १ को सभा शतक १४, उद्देश १ की