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कर्मग्रन्य भाग पार
का बन्ध और बादरकपायोक्य न होनेसे मोहनीयका बन्ध उसमें
वर्जित है। ... ग्यारहवें आदि तीन गुणस्थानों में केवल सातवेदनीयका बन्ध __ होता है। क्योंकि उनमें कवायोदय सर्वथा न होनेसे अन्य प्रकृतिका बन्ध असंभव है।
सारांश यह है कि तीसरे, आठवें और नौ गुणस्थानमें सातका हो पन्धखान: पहले, दूसरे, चौथे, पाँच, छठे और सातवें गुणवाममें सातका तथा 'प्राटका अन्धस्थान: इसमें छहका बन्धस्मान और ग्यारहवें, बारहवें और तेरहर्षे गुणपानमें एकका बन्धस्थान होता है ॥६॥
1---15 विमार, नन्दोमबकी भी गाथाको श्रीमलयगिरिंसिक ४१ने पसपर है।