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कर्मग्रन्थ भाग चार
पश्च-संयोगका एक भेदः - १-औपशमिक+क्षायिक+क्षायोपशामिक +ौदायिक + पारिणामिक
सब मिलाकर सोनिपातिक-भाष के छुम्बीस भेद हुए । इमसे जो छह भेद जीयों में पाये जाते हैं, उन्हींकोनिदो गाथाश्रामे दिखाया है।
त्रिष-संयोगके उक्त दल भेदों मेसे दसवाँ भेद, ओक्षायोपशमिक, पारिरणामिक और श्रीदयिक मेलसे पता है, वह चारों गति में पाया आता है । सो इस प्रकार:--बारोगतिके जीवोम क्षायोपशामिक-भाष भावेन्द्रिय शादिरूप, पारिवामिक-भाव जीवत्व भादिरूप और औद: यिक-भाय कागय श्रादिरूप है। इस तरह इस त्रिक-संयोगके गति. रूप स्थान-मेवप्ले धार भेद gए ।
चतुः-संयोग के उक्त गाँध भेड़ोंमेंसे पाँचों भेष चारों गतिमें पाया जाना है. इसलिये इसके भी स्थान-भेदसे चार भेद होते हैं। चारों गनिमें क्षायिक-भाव क्षायिकसम्यस्त्वरूप, क्षायोपशामक भाष भायेन्द्रिय श्रादिरूप, परिणामिका-भाव जीवत्व शादिरूप और औदायिक-भाष काय श्रादिरूप है।
तुः संयोगके पाँच भेदोम चौधा भेद चारों गतिमें पाया जाता है। चारों गति औपशासिक-भाव सम्यक्त्वरूप, क्षायोपशमिकभाष भावेन्द्रिय प्रादिरूप, पारिणामिक-माय जीयत्व आविरूप और श्रीवधिक गाव काय आदिमाप समझना चाहिये । इस धतुः संयोग सांनिपानिकके भी गतिका हान-भेदसे चार भेद हुए।
त्रिक-संयोगके उत्त मस भेदोंमेंस जीवों द सिर्फ भवस्य केवलियों होताइसलिये वह एक ही प्रकारका है। केवलियों में धारिणामिन-भाव जीवत्व श्रादिरूष, प्रौदायिक-भाव गलि साविकर
और क्षायिक मात्र केवलज्ञान प्राधिकार है। ___विक-संयोगके उक्त दस भेदोंमें से सातवाँ भेद सिर्फ सिद्ध जीवोंमें पाये जाने के कारण एक ही प्रकारका है। सियों में पारिणामिक