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तदमें पुनर्जीवितेऽनन्तानन्तं लघु तच्च त्रिकृत्वः । वयस्य तथापि न तमनन्तक्षेपान् क्षिप षडिमान् ॥६॥ सिद्धा निगोदजीवर वनस्पतिः कालपुद्ग्लाश्चैव । सर्व मलोकनभः पुनस्त्रियं गयित्वा केवलद्विकं ॥ ८५॥ क्षिप्तेऽनन्तानन्त भवति ज्येष्ठं तु व्यवहरति मध्यम् । इति सूक्ष्मर्थ विचारो लिखितो देवेन्द्रसूरिभिः ॥८६॥
भान हर
अर्थ-पीछे सूत्रानुसारी मत कहा गया है। अब अन्य आचार्यो का मत कहा जाता है । चतुर्य असंख्यात अर्थात् जघन्य युक्ता संख्यात का एक मश्र वर्ग करने से जधन्य असंख्याता संख्यात होता है । मघण्य असंख्याता संख्यात में एक संख्या मिलाने से मध्यम असंख्यात संख्यात होता है ||८०||
अधन्य असंख्याता संख्यात में से एक संख्या घटा वो जाय तो पीछे का गुरु अर्थात् उत्कृष्ट युक्तासंख्यात होता है । जन्य असंमाता संख्यात का तीन बार वर्ग कर मोघे लिखो दस' असंख्यात
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१ – किसी संख्या का तीन बार वर्ग करना हो तो उस संख्य का वर्ग करना, वर्ग-जन्य संस्था का वर्ग करता और वर्ग-जन्य संख्या का भी वर्ग करना । उदाहरणार्थं ५ का तीन बार वर्ग करना हो तो ५ का वर्ग २५, २५ का वर्ग ६२५, ६२५ का वर्ग ३६०६२५) मह पाँच का तीन बार वर्ग हुआ । २ --- लोकाकाश, धर्मास्तिकाय, इन चारों के प्रदेश असंख्यात असंख्यात आपस में तुल्य है ।
अधर्मास्तिकाय और एक जीव,
ज्ञानावरणीय आदि प्रत्येक कर्म की स्थिति के जघन्य से उत्कृष्ट पर्यन्त समय-भेद से असंख्यात भेद है । जैसे- ज्ञानावरणीय की जधन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त प्रमाण और उत्कृष्ट स्थिति तीस कोटाकोटी सागरोपमप्रमाण है । अन्तर्मुहूर्त से एक समय अधि दो समय अत्रिक, तीन समम अधिक, इस तरह एक-एक समय बढ़ते बढ़ते एक समय कम तीस कोटाकोटी सागरोपम तक की सब स्थितियाँ मध्यम है । अन्तर्मुहूर्त और सीस