Book Title: Karmagrantha Part 4
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 300
________________ कर्मग्रन्थ भाग पार परिशिष्ट "फ”। पृष्ठ २०६, पक्कि १४के मल माब' पर गुणस्थानों में एक-जीवाश्रित भावोंकी संख्या जैसी इस गाथा में है, वैसी ही पञ्चसग्रहके द्वार २को ६४वी गाथामें है; परन्तु इस गाथा की टीका और टवामें तथा पञ्चसग्रहको उक्त गाथा की टीका में थोड़ासा व्याख्या-भेद है। टोका-टवेमें 'उपशमक' 'जएकान्स' दो पदोंसे नौवा, दसों और ग्यारहवां, ये तीन गुणस्थान ग्रहण किये गये हैं और 'अपूर्व' पदसे आठवा गुणस्थानमात्र । नौवें भाटिनीन गुणस्थानों में उपयोग : ति पलामक. सभ्यक्त्वीको या क्षायिकमभ्यवत्वीको वारिश्र औपशमिक माना है । आठवें गुणस्थानमें औपशमिक या क्षायिक किसी सम्यक्त्यमालेको औषमिकचारित्र इष्ट नहीं है, किन्तु क्षायोपशमिक । इसका प्रमाण गाथामें 'अपूर्व शब्दका अलग ग्रहण करना है। क्योंकि यदि आटवें गुणस्थानमें भी औपशमिकचारित्र इष्ट होता तो 'अपूर्व' शाब्द अलग ग्रहण न करके उपशमक शब्दसे ही नौ आदि गुणस्थानकी सरह आठवेंका भी सूधन किया जाता । नौवें और दसवें गुणस्थानके अपकणि-गत-जीव-सम्बन्धी माबोंका व चारित्र का उल्लेख टोका या टबे में नहीं है । पञ्चसंग्रहकी टीकामें श्रीमलगिरिने 'उपशमक' 'उपशान्त' पद से आठवें से ग्यारहये तक उपशमश्रेणिवाले चार गुणस्थान और 'अपूर्व' तथा 'श्रीण' पदसे आठवां, नौवा, दसवां और बारहवां, ये क्षपकश्रेणिवाले चार गुणस्थान ग्रहण किये हैं। उपशमणिबाले उक्त वारों गुणस्थान में उन्होंने औपशमिक चारित्र माना है, पर क्षपकणिवाले चारों गुणस्थानके वारित्रके सम्बन्धमें कुछ उल्लेख नहीं किया है। ___ग्यारहवें गुणस्थानमें सम्पूर्ण मोहनीयका उपशम हो जानेके कारण सिर्फ औपमिकचारित्र हैं। नौवें और दसवें गुणस्थानमें ओपशमिक क्षायोपशमिक दो चारित्र हैं; क्योंकि इन दो गुणस्थानों में चारित्रमोहनीयकी कुछ प्रकृतियाँ उपशान्त होती हैं, सब नहीं । उपशान्त प्रकृतियोंकी अपेक्षासे औपमिक

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