Book Title: Karmagrantha Part 4
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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कर्म ग्रन्थ भाग नार
उक्त छह मूल भेजों में से दूसरे का अर्थात् युक्तासंख्यात का अभ्यास करने से नौ उत्तर मेवों में से सातवा असंस्थात अर्थात् जघन्य असंख्यात संख्यात होता है । जघन्य असख्यातासंख्यात में से एक घटाने पर पीछे का उत्कृष्ट मेव अर्थात् उत्कृष्ट युक्तासंख्यात होता है । जघन्य युक्तासख्यात और उत्कृष्ट युक्तासंख्यात के बीच की सब संस्थाएं मध्यम युक्त संख्यात है ।
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उक्त छह मूल मेवों में से तीसरे का अर्थात् असंख्याता संख्यात कर अभ्यास करने से अमन्त के भी उत्तर भेदों में से प्रथम अनन्त अर्थात् जघन्य परीशानम्स होता है। जधन्य परीतानन में से एक संख्या घटाने पर उत्कृष्ट असंख्य तारारूपास होता है । जघन्य असंख्यातासंख्यात और उत्कृष्ट असंख्यात संख्यात के बीच की सब संख्याएँ मध्यम असंख्यात संख्यात हैं ।
चौये मूल मेद का अर्थात् परीक्षानन्तका अभ्यास करने से अनन्त का चौथा उत्तर मेव अर्थात् जघन्य युक्तानन्त होता है । एक कम जघन्य युक्तानन्त उत्कृष्ट परीक्षानन्त है । जघन्य परीसानन्त यथा उत्कृष्ट परीतानगल के बीच को सब सख्याएँ मध्यम शान हैं ।
पाँस मूल भव कर अर्थात् युक्तानन्त का अभ्यास करने से अनन्तका सातों उत्तर मेव अर्थात् जघन्य अन्तानन्त होता है। इसमें से एक कम करने पर उत्कृष्ट युक्तानन्त होता है । जघन्य युक्तानन्त मौर वस्कृष्ट युक्तान्त के बीच की सब सख्याएँ मध्यम मुक्तानन्त है। अन्य अमरतामन्त के आगे को सब संख्याएँ मध्यम अनन्तानन्त ही है; क्योंकि सिद्धान्त' मत के अनुसार उत्कृष्ट अनन्तानन्त नहीं माना
भाला ॥ ७२ ॥
१ -- अनुयोगद्वार, पृ० तथा २४१ ।
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