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कर्मग्रन्थ भाग चार
संक्यात तक बीचकी सब संख्याएँ मध्यम संख्यात है। शास्त्र में उत्कृष्ट संपातका स्वरूप जानने के लिये पल्यौकी कल्पना है, जो अयली गापामि दिखायी है .
पल्यों के नाम तथा प्रमाण । पहाणवाहियसला,ग-पडिसलागामहासलागक्खा। जायणसहमोगाढा, सवेश्यता ससिहभारिया ॥७३॥
पक्ष्या अनयस्थितशला कामातशळाकामदाशलाकाख्याः । योजनसलायगादा:, स्वेदिकासा: सजिलभृताः ।।७।।
अर्ध-चार पल्यके माम क्रमशः प्रनवस्थित, शलाका, प्रतिशलाका और महाशलाका है। चारों पल्य गहराई में एक हजार योजन और ऊँमाई में अम्यूनीषकी पावर धेदिका पर्यन्त अर्थात् साढ़े पाठ योजन प्रमाण समझामे चाहिये। इन्हें शिखा पर्यन्त सरसोंसे पूर्ण करने का विधान है ॥ ३॥
भावार्थ-शास्त्रमें सत् और असत् दो प्रकारको कल्पना होतो है। ओ कार्य में परिणत को शासके, वह सत्कल्पना,और जो किसी पस्तुका स्वरूप समझने में उपयोगीमात्र, पर कार्य में परिसवन की जा सके, वह 'असरकराना पस्योंका विचार मसरकल्पना है; इसका प्रयोजन उत्कृष्ट संपातका स्वरूप समझानामात्र है।
शाखम पल्प पार कहे गये हैं:-(१) ममवस्थित, (२) शलाका, (१) प्रतिशलाका और (४) महाशाखाका । इनकी लम्बाई-चौड़ाई अम्म्द्वीप पावर--एक-एक लाख योजनकी, गहराई एक हजार पोजन की भौर ऊँचाई पद्मपर बेदिका-प्रमाण अर्थात् साढे पाठ योजनकी कही हुई है। पत्यकी गहराई तथा ऊँचाई मेडको समतल भूमिसे समझना चाहिये । सारांश, ये काशित पल्प तामे शिक्षा तकमें १०० योजन लिये जाते हैं।