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कर्मग्रन्थ भाग चार
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एक सर्वच निकालने से जब शलाकापल्य बिलकुल बाली हो जाय, राय शलाकापल्य के काली हो आमेका सूचक एक सय प्रतिशलाकापल्पमें डालना चाहिये। श्रम तक से
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पड़ा है, शलाकापल्य खाली हो चुका है और प्रतिशलाकापल्यम एक सप पड़ा हुआ है।
इसके पश्चात् अभवस्थितपण्यके एक-एक सर्वदको आगे द्वीप समुद्र में डालकर उसे खाली कर देना चाहिये और उसके खाली हो चुकनेका सुबक एक सर्व पूर्व की तरह शलाकापल्यमे, जां खाली हो गया है, डालना चाहिये। इस प्रकार मूल स्थानसे अन्तिम सर्वपवाले स्थान तक विस्तीर्ण नया-नया अनवस्थितपत्य बनाते जाना चाहिये और उसे सर्षपसे भरकर उक्त विधिके कानुसार खाली करते जाना चाहिये । तथा प्रत्येक अनवस्थितपत्यके खाली हो चुकनेवर एक-एक सर्व शलाकापल्यमें डालते जाना चाहिये। ऐसा करने से अय शलाकापल्य सर्पपोंस फिरसे भर आय, तब जिस स्थान में अन्तिम सर्षप पड़ा हो, मूल स्थान से उस स्थान तक विस्तीर्णं अनवस्थितपयको बनाकर उसे भी सर्वप भर देना चाहिये। अब तक में अनवस्थित और शलाका, ये दो पल्य भरे हुए हैं और प्रतिशला कापल्यमें एक सर्वप है ।
शलाका पत्यको पूर्व विधि के अनुसार फिर से खाली कर देना चाहिये और उसके खाली हो चुकनेपर एक सर्षप प्रतिशलाकापत्य में रखना चाहिये। अब तक स्पिल्य भरा हुआ है, शलाकापल्य खाली है और प्रतिशलाकापल्यमें दो सर्वत्र पढ़े हुए हैं।
इसके आगे फिर भी पूर्वोक्तः विधिके अनुसार अनवस्थितपत्यको खाली करना और एक-एक सर्षपको शलाकागत्य में डालना चाहिये। इस प्रकार शलाकापल्यको बार-बार भर कर उत विधिके