________________
कर्मपन्य भाग चार
सीधे सलाह बम, एवं नाति मी तरह। सहिंताय तेदिया, तुरिजाकिर फुडा परो १७॥
वायदोपोषिकवर्षप शिपया निहिते प्रपमे । प्रथममिव तदन्तमेव पुनर्मते तस्मिन्तपा लीये ॥ ४ ॥ लिप्यते शलाकापल्ले एकस्सर्षप हांत शकालपणेन । पूर्णा दिलीयम ततः पूर्वदिप तस्मिन्नुद्धृते ॥ ४५ ॥ सोणे शलाका तृतीये एवं प्रथभेदिताय भर ।
तेस्तृतीयं च तुर्ग यायाल स्फुटामत्वारः ।। ७६ ॥ मर्य-पूर्ण भगवस्थितपल्यमेंसे एक-एक सर्षप प्रीप-समुदमें राखना चाहिये, जिस शीप या समुद्र में सर्षप समाप्त हो जायें, ग्स दीप या समुद्र पर्यन्त विस्तीर्णं नया अमवस्थितपस्प बनाकर उसे सर्वपोंसे भरना चाहिये।
इनमेले एक एक सर्षप द्वीप-समुद्री सतमेपर जब मनस्पितपल्य खाली हो जाय, तब शलाकापल्यमें एक सर्वप शलमाचाहिये। इस तरह एक-एक सर्वप डालनेसे जय दूसरा शनाकापल्य मर जाय, तब उसे पूर्वकी तरह उठाना चाहिये।
उठाकर उसमेंसे एक-एक सर्षप निकालकर उसे खाली करमा और मतिशलाकामें एक सर्षप डालना चाहिये। इस प्रकार अनपस्थितसे शलाकाको और अनवस्थित-शलाका बोनौसे तीसरे (प्रतिशलाका)को और पहले तीन पल्यसे चौथे ( महाशलाका) पल्यको भर देना चाहिये। इस तरह चारों पल्पोको परिपूर्ण भर देना चाहिये ||७४-७६६
भावार्य:--सबसे पहिले साक्ष-योजन-प्रमाण मूत भगवविधतपस्यको सपंपोसे भरना और उन सर्वपोमेसे पक-एक सर्पपको