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कमग्रम्प भाग चार
वे सभी प्रमाणमें पूर्व-पूर्वकी अपेक्षा बड़े-बड़े ही होते जाते हैं। परिमाणको अनिश्चितताके कारण इन पल्यौका नाम. 'भगवस्थित' रममा गया है। यह ध्यान रखना चाहिये कि कामवस्थितपल्य खम्बाई-चौड़ाईम अनियत होनेपर भी ऊँचाईमै नियत ही मर्याद १०० योजन मान लिये आते हैं।
अमवस्थितपल्योको कहाँ तक बनाना ? इसका खुलासा मागेको गाधाओसे हो जायगा।
मत्येक अनवस्थितपल्यके वाली हो जानेपर पक-एक सर्षप सलाकापल्य में डाल दिया जाता है। अर्थात् शलाका पल्यौ डाले गये सर्वयोंकी संख्यासे यही जाना जाता है कि इतनी वफ़ा असरामवस्थितपल्य बाबी हुए।
हर एक शलाकापल्यके खाली होने के समय पकनरक सर्षप प्रतिशलाकापल्पमें डाला जाता है। प्रतिशलाकापल्यके सर्षको संख्यासे यह विदित होता है कि तिमी बार शलाकापस्य मरा गया और साली हुआ।
प्रतिशलाकापल्यके एक-एक बार मर जामे और बाली हो जानेपर एक-एक सर्षप महाशलाकापल्यमै सल दिया जाता है, जिससे यह माना जा सकता है कि इतनी दफा प्रतिशलाकापल्य भरा गया और बाली किया गया । ७३ ॥
___ पल्पोंके भरने भादिकी विधि । तादीवुदाहिम इषि, कसरिसवं खिपि प निहिए परमे। पदम व तदन्तं चिय, पुष भरिए तंमि तह जीणे ॥७it सिप्पा मबागपडे, सरिसबो इप सबागलक्षणं । पुभो पीयो प तमो, पुचि पि व तमि उद्धरिए ॥७॥