Book Title: Karmagrantha Part 4
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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कमाथ-भाग चार
२०॥
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पर बीस मेव होते हैं। सो इस प्रकार:-(१) अपन्य संश्यात, (२) मध्यम संख्यात और (6) उस्कृष्ट संख्याता (जपन्य परीचा. संख्यात, (५) मध्यम परीचासंख्यात और.(६)
उ परीचासंख्यात, (७) अबस्य युकासंख्यात, (मध्यम युकासंख्यात और (8) उत्कृष्ट शुशासंख्यास, (१०) अधन्य असंख्यातासंख्यात, १.१) मध्यम प्रसंख्यातासंक्यात और (१२) उत्कृष्ट मसंख्यातासंण्यात, (१३) अधम्य परीत्तानन्त, (१४) मध्यमपरीत्तानन्त और (११) उत्कृष्ट परीसामन्त, (१६) जघन्य युक्तानम्त, (१७) मध्यम युक्तानन्त और (१८) उत्कृष्ट युकानम्तः (18) जघन्य अनन्तानन्त, (२०) मध्यम अनन्तानन्त और (२१) उस्कए श्रनम्तानन्त ॥७१॥
संख्यासके तीन भेदोंका स्वरूप । बहु संखिज्ज हुचिय, प्रमो परं मजिझम तुजा गुरुभं । जबूझीष नमान्य, पारूबवार इमं.।। ७२ ।।
छघु संख्येयं विषाइतः परं मध्यमन्तु यावद्गुर कम् । कम्ब्हापप्रमाकचतुष्पस्यप्ररूपणयेदम् ॥ ७ ॥
अर्थ-चोकी ही संख्या लघु (जधन्य) संख्यात है। इससे मागे सीनसे लेकर उत्कृष्ट संण्यात तककी सरसंख्याएँ मध्यम संन्यात है। उत्कृष्ट संख्यातका स्वरूप जम्बूद्वीप-प्रमाण पल्योंके निरूपणसे आना जाता है ॥२॥
भावार्य संख्याका मतलब भेद (पार्थक्य)से है अर्थात् जिसमें मेष प्रतीत हो, वही संख्या है। एकमे मेद प्रतीत नहीं होता। इस लिये सबसे कम होनेपर भी एकको जघन्य संख्यात मही कहा। पार्थयकी प्रतीति को माविमें होती है। इसलिये ही संख्या है। इनमैसे दोकी संख्या अधम्म संख्यात और तीनसे क्षेकर का