Book Title: Karmagrantha Part 4
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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कर्मग्रन्थ भाग चार
करण-गुसस्थानमें चार भाष होते हैं और शेष सब गुणस्थानों में तीन भाव ॥७॥
भावार्थ'-चौथे, पाँचवे, छठे और सातये, इन चार गुणस्यानोमें तीन या चार भाव हैं। तीम भाष ये हैं:-(१) श्रीवयिका-मनुम्ब मादिगति; (२) पारिणामिकः-श्रीवत्व आदि मौर।) सायोपशमिय:भाषेन्द्रिय, सम्पत्य आदि । ये तीन भाष झायोपशमिकसम्यावके समय पाये जाते हैं। परन्तु जप क्षायिक या औपथमिक सम्यक्त हो, तब इन दोमेंसे कोई-पक सम्यक्त्व तथा उक्त तीन, इस प्रकार बार भाव समझने चाहिये।
नौधे, दसवे और ग्यारहवे, इन तीन गुणस्थानोंमें चार या पाँच भाष पाये जाते हैं। चार भाव उस समय, जबकि प्रोपरामिडसम्यक्त्वी अोष पशमणिवाला हो । चार भावमें तीन तो उसकी और चौथा औपशमिक-सम्यक्त्व य चारित्र। पौध उकाल चौधा क्षायिकसम्यक्त्व और पाँचौं प्रौपरामिकचारित्र।
पाठवे और बारहये, इन दो गुणस्थानों में चार भाव होते हैं। पाठ में उक्त तीन और औपशमिक और क्षायिक, इन दो से कोई एक सम्यक्त्व, ये चार भाव समझने चाहिये। बारहवेमें उक्त तीन और चौथा शामिकसम्यक्त्व व क्षायिकषारित्र, ये चार भाव।
शेष पाँच (पहलो, दूसरे, तीसरे, सेरह और बौदहये) गुणस्थानों में तीन भाष हैं। पहले, दूसरे और तीसरे गुणस्थानमें छीवयिकः मनुष्य प्रावि गति; पारिणामिकः-जीवश्वमादि और क्षायो. पशमिका भावेन्द्रिय भादि, ये तीन भाष हैं। तेरहवे और चौवह गुणस्थानमें मौदपिका-मनुष्यत्व: पारिणामिका--जीवस्व और सायिकः-चान प्रापि, ये तीम भाव है ।।७०||
....... .. . .. .. . . . . -- १-२ परिशिष्ट ।