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कर्मनन्य भाग पार
---------... .. . कर्मके उदयका फल है। प्रसंगम, पिरतिका अभाव है। यह अप्रत्यानपानापरणीपकपायके उदयका परिणाम है। मत-भेदसे पाके तीन स्वरूप है:-(१) कापापिक-परिणाम, (२) कर्म-परिणति और (३) योगपरिणाम। ये तीनों प्रौदयिक ही हैं, क्योंकि काषायिक परिणाम कवायके उदयका, कम-परिणत कर्म के उदयका और योग-परिणाम शूरीरनामकर्म के पदयका कला है । कषाय, कायमोहनीयकर्मके उदयसे होता है। गतियाँ गतिमामकर्मके उदय-जन्य हैं। इध्य और भाय बोनों प्रकार का वेद औदायिक है । प्राकृतिकप द्रव्यद म्योपासनामकर्मके उदयसे और अभिलावारूप भाषवेद दमोहनीयके उदयसे होता है। मिथ्यात्य, अविवेकपूर्ण गादतम मोह है, जो मिथ्यात्वमोहनीयकर्म के उदयका परिणाम है। मोदयिक-भाय अभव्यके अनादि-मनन्त और मन्यके बहुधा अनादि-सान्त है।
जीवत्य, भव्यत्व और अभव्यत्व, ये तीन पारिवामिक-भाव है। प्राण धारण करना जीवत्व है। यह भाष संसारी और सिद्ध सब जीवों में मौजूद होने के कारण भव्यत्व और प्रभव्यत्वकी अपेक्षा व्यापक (अधिक-देश-स्थायी) है । भव्यत्व सिर्फ भव्य जीपों में और प्रभव्यत्व सिर्फ अमव्य जोधों में है। पारिणामिक-माव अनादि-अनन्त है।
पाँच भाषों के सब मिलाकर पन भेद होते हैं:---श्रीपशमिकके दो, क्षायिकके नौ, कायोपशमिकके अठारह, मौदयिकके इकोस और पारिणामिकके तीन !६६६॥ चउ चउगईसुमीसग, परिणामुदपहिं पर सखइएहिं। उपसमजुएहि वा घड़, केवलि परिणामुद्यखहए ॥६॥ खगपरिणामे सिद्धा, नराण पणजोगुवसमसेहीए। इय पनर संनिवाइय, भेया वीसं असंभाविणो ॥१८॥