Book Title: Karmagrantha Part 4
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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कर्मग्रम्ब-भाग चार
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चौदहवें गुणवान योगका प्रभाव है। योग के सिवाय ददौरा नहीं हो सकती, इस कारण इसमें उदीरणाका प्रभाव है।
सारांश पर है कि तीसरे गुणस्थान में आठहीका उदीरणालान, पहले, दूसरे, खोये, पाँच और छठे सातका तथा अडका, सातवेंसे पोकर दसवें गुणस्थानको एक अवलिका बाकी रहे तब तक छहका, दसकी अन्तिम आवलिकासे बारहवे गुणस्थानको धरम मावलिका शेष रहे तब तक पाँचका और बारहवेंकी परम भाथलिकाले तेरहवें गुणसाम के अन्त तक दोका उदीरणास्थान पाया आता है।
अल्प बहुत्व |
म्यारहवे गुणस्थानया से जीव अन्य प्रत्येक गुणस्थानवाले जीवोंसे अल्प है, क्योंकि वे प्रतिपद्यमान ( किसी विवक्षित समयमें उस अवस्थाको पानेवाले) चौमन और प्रतिपक्ष (किसी विवक्षित समयके पहिलेले उस अवस्थाको पाये हुए) एक दो या तीन आदि पाये आते हैं। बारहवे गुणस्थानवाले प्रतिपद्यमान उत्कृष्ट एक सौ आठ और पूर्वप्रतिपक्ष शत-पृथक्त्व (दो सीसे नौ सौ तक) पाये जाते हैं, इसलिये ये ग्यारहवें गुरुस्थानवालोंसे संस्थातगुरु कहे गये हैं। उपशमश्रेणिके प्रतिपद्यमान जीध उत्कृष्ट चौवन और पूर्वप्रतिपक्ष एक, दो, तीन आदि तथा क्षपकक्षेविके प्रतिपद्यमान उत्कृष्ट एक सौ आठ और पूर्वप्रतिपन्न शत- पृथक्त्व माने गये हैं । उभय श्रेणिषाले सभी आठवें, नौवें और दसवे गुणस्थानमें वर्तमान होते हैं। इसलिये इन तीनों गुणस्थानाले जीव भापसमें समान है किन्तु बारहवें गुणभानवालोंकी अपेक्षा विशेषअधिक हैं ।॥ ६२ ॥ जोगिअपमतइयरे, संखगुपा देससासणामांसा । भविश्य अजोगिमिषा, भसंस्ख चउरो दुवे ता ॥ ६३॥
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